________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit 188 अद्ध करिसे।. 2 करिसो.३ अहपलं, 4 पलं, 5 अह तुला, 6 तुला, 7 अह भारो, 8 भारो,॥ १दो अद्ध करिसो करिसो 2 दो करिसो अड. पलं, 3 दो अहपलाइ पलं, 4 पंच पल मइया तुलं, 5 दसतुलाओ अद्वभारो, 6 बीसतुलाओ भारो // एएणं उम्माण प्पमाणेणं के पओयणं ? तेणं एएणं उम्माणप्पमाणेणं पत्ता गुरु तरगचोय कुंकुम,खंड.गुल,मछंडि आदीणं दव्याणं उम्भाणप्पमाण निवत्ति लक्खण भवति / / सेतं उम्माण // 5 // से किंतं ओमाणे ? ओमाणे ! जणं अथ अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्रीजमालक ऋषिजी शिष्य ! उन्मान सो जो उन्मानकर निनस्व रूपपने स्थापन करे सो तद्यथा-१ पल्यका आठवा भाग अर्ध कर्षा. 2 पल्यका चौथा भागकर्ष, 3 आधापल्य, 4 पल्य, साही वावन पलकी अर्ध तुला, तुला, 11050 पलका आधाभार, 2100 पल्य का पूर्ण भार, दो अर्धकी का. एक कर्ष, दो कर्ष अर्ध पला, दोआधे पल का पल, 105 पल एक तुला, पांव अर्थ तुला सो साढी बावन , पल, दश तुला आधाभार 1850 पल, बीसतुला एकभार // अहो भगव ! इस उन्मान से क्या प्रयोजन है ? अहो शिष्य ! उन्मान प्रमान कर तमाल पत्रादि पत्र, अगर, तार, चूवा. कुंकम, खांड ( सक्कर ) मच्छंडी (मिश्री) आदि द्रव्य का उन्मान प्रमान का निवृत्ति लक्षण होता है। यह उन्मान प्रमान हुवा. // 5 // अहो भगवन् ! उन्मान किसे कहते हैं ? अहो शिप्य : जिस का प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी चालापवादजी For Private and Personal Use Only