________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * 4 सूत्र अर्थ 428 एकोत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र चतुर्थ मूल * थिकाप जाव अधासमए से तं दव्यप्यमाणे // 142 // से किं तं भाव रामाणे ? भावप्पमाणे ! चउविहा पण्णत्ता तंजहा-समासिए, ताहितए, धाउए, निरुत्तीए // 243 // से किं तं समासए ? समासए ! सत्त समासा भवंति तंजहा. 1 हेडेय, 2 बहुवही, 3 कम्म धारए, 4 दिय, 5 तप्पुरिसे, 6 अव्वद भावे, एगसेसउसत्तमे // // 144 // से किं तं इंदे ? इंव-देताश्च ओष्टाच. दंतोष्टम्. स्सनौच उदरंच-स्तनौदरं वस्त्रंच पात्रंच-वस्त्रपात्रम अश्वाश्थ, महिषाश्च। तद्यथा- धर्मास्तिकाया. 2 अधर्मास्तिकाया, 3 आकाशास्तिकाया, 4 जीवास्तिकाया. 5 पुद्गलास्तिकाया , और 6 अद्धासमय. यह द्रव्य प्रमाण हवा. // 142 // अहो भगवन ! भाव प्रमाण किसे कहते हैं अहो शिष्य ! भाव प्रमाण चार प्रकार से कहा गया हैं. तद्यथा-१ सामासिक, 2 तद्धित, 3 धातु औ १४निरुक्त // 143 // अहो भगवन ! समास किसे कहते है ? अहो शिष्य ! समास सात प्रकार से कहा है. तद्यथा-१ द्वंद्र, 2 बहुव्रीहि, 3 कर्मधारय, 4 द्विगु, 5 तत्पुरुष, 6 अव्ययी भाव और 7 एक शेष, // 1.44 // अहो भगवन् ! द्वंद्व सामास किस कहते हैं ? अहो शिष्य ! द्वंद्व समास के मुख्याता से दो भेद होते हैं. एक अवयव प्रधान और दुसरा समाहार प्रधान. इन में से यहां समाहार प्रधान के उदाहरण कहते हैं. नैसे दंताश्च ओष्टीच-दंतोष्टम, स्तनौच उदरंच। स्तनोदरम्, वस्त्रंच पात्रंच-वस्त्र 4ॐ नमविषय 89480 For Private and Personal Use Only