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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 488888 एकात्रंशत्तम अनुयागद्वारसूत्र -चतुर्थ मूल 280 हेमंतए, वसंतए गिम्हाए, से त काल संजोग // 13 // सं किं तं भाव संजोगे? / भाव संजोगे दुविहे पण्णत्ते तंजहा-पसत्थेय, अपारस्येय // से कि तं पासत्थे ? णाणेणं णाणी, सणेणं दसणी, चरित्तेणं चरित्ती, सेत्तं / त्थंले किं तं अपसत्थे ? अपसत्थे कोहेणं कोही, माणेणं माणी, माघाए माई.लोभ लोभी, से तं असत्थे! से तं भाव संजोगे / से तं संजोगेणं / / 132 ॥से कि तं पमाणेणं ? प्पमाणणं चउव्विहा पण्णत्ता तंजहा-१ नामप्पमाण, 2 ठवणप्पमाणे, 3 दवप्पमाणे, 4 भावप्पमाणे // से किं तं नाम प्पमाणे ? नामप्पमाणे जरसणं जीवरसवा की वर्षाती. शरद ऋत से जन्मे को शरदज हेमन ऋतु के जन्मे को हेवंती, वसंत ऋतु के जन्मे को है वसंती ग्रीषम ऋतु के जन्मे का ग्रीष्या रु. का के सोग से नाम स्थापन करे सो काल नामः // 131 // अहो भगवन् ? भाव संयोगन नाम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! भाव संयोगज नाम के दो भेद कहे हैं. प्रशस्त व अप्रशस्त, इस में प्रशस्त भाव संयोगन नाम सो ज्ञान से ज्ञानी, दर्शन से दर्शवीय चारित्र से चारित्रीय उत्यादि सद्गुणों से जो नाप पडे सो प्रशस्त. और दुर्गुणों से जो नाम पडे सो / अपशस्त जैसे क्रोध से क्रोधी. मान से मानी. माया से मायावी, लोष से लोभी. यह भाव संयोगी हुवा. यह संयोग नाम हुवा. // 232 // अहों भगवन् ! प्रमाण नाम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! प्रमाण नाम के चार भेद कहे हैं तद्यथा-१ नाम प्रमाण, 2 स्थापना प्रमाण, 3 द्रव्य प्रमाण और 4 भाव नाम विषय 4-POct For Private and Personal Use Only
SR No.020050
Book TitleAnuyogdwar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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