________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खंधस्स वा, रुदस्स वा, सिवस्स वा, वेसमणरस वा, देवरस वा, नागरस वा, जक्स्वस्स वा, भूयरस वा, मुगुंदरस वा, अजाए वा; दुग्गाए बा, कोदृकिरियाए वा, उवलेवण, समजण,आवरिसणाधव पप्फ गंध मलाइयाई दव्वावस्सयाई करेति.से तं कप्परावय. णियं दव्यावस्सयं // 18 // से किं तं लोगुचरियं दवावस्सयं ? लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं जे इमे-समणगुणमुक्कजोगी, छक्कायनिरणुकंपा, इयाइव उद्दामा, गयाइव निरंकुसा, घट्ठा,मट्ठा,कुप्पोट्ठा,पंडुरपभं पाउरणा,जिणाणं अणाणाए, सच्छंद चरन करनेवाले, विनयवादी अथवा नास्तिकगदी, वृद्ध श्रावक * (ग्रामण) प्रमुख पाखंडी प्रातःकाल होते ही यावत् जाज्वल्यमान मूर्य प्रकाशित होते ही इन्द्र की. स्कंध-कार्मिक स्वामी की, रुद्र की, शिव की, वैभ्रमण की. देवता की. नाग देव की. यक्ष देव की. भूत की. मुकंद-बलदेव की, बचा देवी की, दुर्गा देवी की, कोट क्रिया-जिस के आगे बहुत प्राणियों का वध होवे वैसे देवता देवियों की प्रतिमा के स्थान गोमयादि से डीपन कर पांडु आदि से पोत कर उन के आगे धूप क्षेपे, पुष्पादिक की माला पहिनावे. इत्यादिक द्रव्य आवश्यक करे. यह कुमावनिक द्रव्य आवश्यक हुवा // 18 // अहो भगवन : लोक:सर द्रब्य आवश्यक किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! लोकोत्तर द्रव्य आवश्यक उसे कहते हैं कि मो श्री ऋषभदेव स्वामी के समयमें जो भरत जीने माहण-ब्राह्मण श्रावक स्थापन किये थे उनकी जातिमें से कितनेक 1+परंपरा से श्रादक वृत्ति से च्युत होगये और ब्राह्मण की क्रिया करने लगे उन को वम भावक के नाम से बोगाये गये हैं. बनुवादक बालबमारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी *काशक-राजाबहादुर काला सुखदेवसहायजी ज्वाला सादजी. For Private and Personal Use Only