________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कमलं पीवरसिरीयं // 19 // एएनव कप्वरस्सा, बत्तीसा दास विही समुप्पन्नो / / गाहाहिं मुणेयव्वा, हवंति सुहा वमीसावा // 20 // से तं नवनामे // 126 // से किं तं दसनामे ? दसनामे दसविहे पणते तंजहा-१ गोणे. 2 नोगोणे, 3 आयाण पदेणं, 4 पडिवक्ख पदेणं, पहाणयाए, 6 अणादि सिइंतेणं, 7 नामेणं, 4.1 अनुवादक दालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक मापनी+ का मुख रूपी कमल उपशम रूप श्री से आरंकृत होती है उसी का नाम प्रशांत रस है. // पह नव काव्य रस सूत्र के 32 दोषों की विधि की रचना से उत्पन्न होते हैं जैसे कि अनिषु द५ से रहित अद्भूत रस की उत्पत्ति होती है ऐसे हीरोनी चाहिये हम गाथा काच्च छंदादि ये जानने चाहिये परंत का ध्यान में रस.मा होने जेसे कि पर काव्य में एक रस हो शुद मन है दे एक काव्य में दो तीन रस हो उसे मिश्रित रस को 32 दोनों के प्रयोग सेन की उत्पति ती? और अन्य प्रकार से भी लोणाली. 13. अलर चंद और छंदादि प्रयो में इनका सस्ता स्वरूप मानना चाहिये यह ना नाम : स्वरूप पूर्ण हो गया. // 126 // अहो भगवन् [शनाप किसे कहते है ? अहो विष्य ! दश नान दश प्रकार से विवणं किये गये हैं, जैसे कि-१ गुण निप्पन्न नाम. 2 निर्गुण नाम, 2 भदानपद नाम, 4 प्रति पक्ष नाम, 5 प्रधान पद नाम, 6 अनादि सिद्ध नाम, 7 नामकर नाम, 8 अवयव नाम, 9 .27, मावादासक्ष.. सादजी For Private and Personal Use Only