________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir >< 48- एकत्रिंशतम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थपूल / // मंडगा विलास वित्वोय, हास लीलारमणलिंगो // 4 // सिंगागे रसोजहा, महर विलासलारीयाहिउपपमाण कर जन सभामा 5 सानोडला दाविहायजाणे अपुचो, अणुभूत पुजो या तो किसी को अभूतोनाम // 6 // अब मुरउरसो सहा, पहा : अन्नं अस्थि कार्य यांच्या उत्पन्न करने के लिये अषणादि से शरीर का मंडन करे. नेत्रादि अंगोपाल मा कर अंग को विकार में प्रवर्तीवे, हास्य दनकरीले कामोत्पादक भाषा बोले, परस्पर क्रीडा करे, या गार जानना. इस उदाहरण पणकार युक्त मधुर शब्द विलाप्त लीला व सटाक्ष करने वाली यवनी या युवान केहदय में रमण करे ऐसे कंदवितार रूप श्रृंगार भाषण व स्त्रियों नेपरादि भूषण धंकार-धमकार करती दालों की मेखला को दर्शाती रत्न जडित कटि मेखलादि भलाकार करती चार पुरुषों को विमोहित करे. यह शृंगार रस है. // 3.4 // अथ अद्भूत रस के लक्षण कहते हैं-प्रथम अनुभवः नहीं हो वैसा विस्मय कारक बनाव को अदभूत रस कहते हैं. कितनेक अच्छे अदक्षत बनाय होत्पादक होते हैं और कितनेक खेद करने वाले होते हैं. यह उस के लक्षण कहे हैं अब उस का उदाहरण करते है. सम्यग् दृष्टिहल की जीवों को जिनेन्द्र प्रणीत शास्त्रों का गढा श्रवण मनन करते आनंद में मग्न हो आश्चर्यचकित होते हैं. और आर्य में विचार करते हैं कि ऐसी विचित्रता अन्य। 8+दादुदाम दावा-2008 / For Private and Personal Use Only