________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनि श्री अमोलक ऋषिआ. सरा तउगामा, मुच्छणा एगवीसइ ताणा एगुणा पण्णासं // सम्म सर मंडलं // 32 // सेसं सत्त नामे // 124 // से किं तं अट्ठ नामे ? अटु नामे अटविहा वयणविभत्ती पणाला तंजहा-(गाहा ) निदेसे पढमाहोइ. वित्तिया उवएसेणं // तइया करणनिकया च उत्थी संपदावणे // 1 // पंचमिय अवायाणे, छट्ठी सस्सामि वायण // सप्तमी सन्नाहाणत्थे, अमीमतगी भवे / / 2 // तत्थ पढमाविभत्ती निद्देसो सो इमोय हवंती॥ वित्तिया पुण उवएसे, भणकुणसुइ मंवयंच स्वर, तीन ग्राम. 21 मूर्छना, और 49 तान वर्णन की गइ है परंतु तान उसे कहते हैं कि जैसे एक वीणा में 7 छेद हैं उन में एक स्वर सात सात वार गाया जाता है सो इस प्रकार सातों सात 49 तान हुए. सो यह 49 तान भी स्वर मंडल के बीच में है. इस प्रकार स्वर मंडल की समाप्ति को कही है अपितु इसे ही सप्त नाम कहते हैं // 32 // यह सात नाम का कथन हुआ. // 124 // अहो भगवन् अष्ट नाम किसे कहते हैं ? अहो शिप्य ! अष्ट गाम में अष्ट विभक्ति कही हैं तद्यथा-निर्देश में प्रथम विभक्ति होती है. 2 उपदश में द्वितीया. करण में तृतीया, '4 संपदान में चतुर्थी, 5 अपादाम में पंचमी, 5 संबंध में षष्टी, 7 आधार में सक्ष्मी और 8 आमंत्रण में अष्टमी विभक्ति होती है. // 1-2 // 'अब इन आठों विभक्तियों के उदाहरन कहते हैं. इस में प्रथम विभक्ति निर्दोष रूप इस प्रकार है. सः, है। प्रकाशक-रानाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी For Private and Personal Use Only