________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोउत्तरियं // 16 // से किं तं लोइयं दवावस्मयं ? लोइयं दव्वावस्सयं जे इमे राईसर,तलवर. मांडविय. कोथुविय इन्भसेटि सेणावइ. मत्यवाह. पभितिओ-कलं पाउप्पभायाए रयणीए मुविमलाए पुल्लुप्पल कमल कोमलुम्मिलियांम अहटरे पभाए रत्तासोगपगासे, किंसुय, सुयमुह, गुंजद्वरागसी से कमलागर नलिणीसडबोहए. उट्ठियंमिसूरे सहस्सरसिमि दिणयरे तेअसा जलंत-मुदधोयणं दंतपक्खालणं, तेल्लफाणह सिद्धत्थयं हरिआलिया अहाग धुव पुष्प मल्ल गंध तंबे ल वत्थमाइआई "चर // 16 // प्रश्न-अहो गवन् ! लौकिक द्रव्य आवश्यक किसे कहते हैं ? उत्त- अहो शिष्य : जो यह राजा, युवराजा. कोतवाल. मंडवाधिपति. कुटुम्बाधिपति, गजांत लक्ष्मी धारका ईम शेठनगर शेठ, सेनापति, सार्थवार इत्यादि लोग प्रातः काल में किचिन्मात्र प्रकारश हाते और गाने के व्यतिक्रप! होने पर. अति निर्मल आकाश होने पर, विकसित कमल व नेत्र समान पंडुर घर्ण के पभा में रक्त अशोक किंशुक वृक्ष के पुण. गुंजा-आधी रति के रंग समान कमलों के जलाशय व नलिनी आदिकमलों को प्रतिधित (विकशित ) करता हुवा सहस्र किरण वाला मूर्य जब प्रकाशमन होता है तब के मुख धोते हैं, दंत प्रक्षालन करते हैं, केश मुख व शरीर में तेल लगाते हैं कांगी बाल स्वच्छ करते है, हरताल व द्रौवा को मस्तक में धारन करते हैं, सुगंधि धूप करते हैं, पुष्प माला वंदनादि गंध व अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी पका-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. For Private and Personal Use Only