________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सुत्र चतुर्थ मूळ <it. अणुवउत्तो आगमतो एग दवावस्सयं, पुहुनं नेच्छइ / तिण्हं सद्दनयाणं-जाणए अणुवउत्ते अवस्थु / कम्हा ? जइ जाण अणुवउत्ते न भवइ, जइ अणुव उत्ते जाणए भवनि, तम्हः त्थि आगमओ दवावरसयं / / से तं आगमओ दवावस्मयं / / 12 // से किं नोआगमओ दवावस्सयं नोआगमओ दवावस्मयं तिविहं पण्णत्तं तंजहाजाणयसरीरदवावस्मयं, भवियसरीर व्यावस्सयाजाणयसरीर भवियसरीर वइरित्तं दवा वस्सय।। १३॥से किं तं जाणय सरीर दशवस्मयं?जाणय सरीर दवावस्मयं आवस्मएत्ति हेत गम से आवश्यक करता है वह एक ही द्रव्य आवश्यक है परंतु यह नय पृयक 2 आवश्यक की इच्छा नहीं करता है क्यों कि यह नय वर्तमान काल के पदानों को ही स्वीकार करता है. शेष 5 शब्द ६समभिरूढ व एवंभूत नय, यों तीनों शब्द नयवाले उ.योगरहित जानते हुए को अवस्तु रूप से मानते हैं. प्रश्न-अहो भगवन् ! किम कारन से ? पत्ता-अहो शिष्य ! यदि जानता होवे तो अनुपयुक्त न होवे और यदि अनपयुक्त रे तो र.न नहीं हो. इस लिये इस ना में आगम से द्रव्य आवश्यक नहीं है. यह आग से द्रव्य अ.यावश्न हुवा ।।१२॥श्न-अहो भगवन् ! नो आगय से द्रव्य आवश्यक किसे कहते हैं? उत्तर-अहः शिष्य ! जो आगम द्रव्य आवश्यक के तीन भेद कहे हैं। तधया-ज्ञ शरीर द्रव्य आवश्यक, भव्य शरीर द्रव्य आवश्यक और ज्ञ शरीर भव्य शरीर व्यति'रिक्त द्रव्य आवश्यक // 13 // प्रश्न-अहो भगवन् ! ज्ञ शरीर व्यावश्यक किसे कहते हैं ? रत 84.8 अवश्यक पर चार निक्षपे 28 428 For Private and Personal Use Only