________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4.अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी तं पजवणामे ? पज्जवणामे ! अणेगविहे पण्णत्ते तंजहा-एगगुणकालए, दुगुणकालए, तिगुणकालए, जाव दसगुणकालए, संखेजगुणकालए, असंखेजगुणकालए, अणंत गुणकालए / एवं-नील-लोहिय-हालिद्द-सुकिल्लावि भाणिया। एगगुण सुरभिगंधे, दगुण सुरभिगंध, जाव अणंतगुण सुरभिगंधे, एवं दुरभिधोरि भाणियव्वा, // एर गुणातितो जाव अपंतगुणतित्ते, एवं कडुय कसाय-अंबिल-मदुरराषि-भाणियव्वा ॥एगा / कक्खडे जाव अणंतगुण कक्खडे, एव-म उप-शुरु : हा पीत-उसिणमिड-मसावि भाणियका, से तं पजपनामे // 107 // तं पुगकाम तिविहा किसे काही अतो शिष्य ! पर्यव नाम के अनेक भेद की है तथधा- तुम काला, दो गण काला. तीन गुण का, यायम् दश गुण काला, संख्यात गुण झाला. अयान गुम काला व अणंत गुण काला, एपे हो नील, रक्तवतव वर्गका मार्ग का का योनिमं व दुरभिगंध का कामा. एक गुण सिक पावत् अनंत गुमलिक, विद्या कायअंधिल ब मधर का कड़ना. ऐसे ही एक गुण कर्कश, यावत् अनंत गुण सकस, यो पृदु, गुरु, लब, शीत, ऊष्ण, स्निग्ध व रुक्ष का कहना. यह पर्थव नाम हुवा // 107 // और भी नाम के तीन भेद कहे हैं तद्यथा-स्त्री, पुरुष फारुक-राजाबहादुर लाला मुश्वदेवतहायजी ज्वालामसादनी For Private and Personal Use Only