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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शब्दकोश-निर्माण की शोध-प्रविधि/81 जनपदीय बोलियों के शब्द-कोश-निर्माण में क्षेत्रीय अन्तर का ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है। शोधकर्ता को चाहिए कि वह निकटवर्ती क्षेत्रों में बोली जाने वाली बोलियों की तुलना में ही शब्दार्थ प्रस्तुत करे। शब्द-कोश में यह अंकित करना भी आवश्यक होता है कि एक ही शब्द एक ही बोली में जिस अर्थ में प्रयुक्त हो रहा है, दूसरी बोली में उसका वह अर्थ नहीं है । जो बदला हुआ अर्थ है, उसे भी उस शब्द के अर्थ के साथ अंकित करना होता है। शब्द-कोश के निर्माण में शोधार्थी यदि तुलनात्मक शोध-प्रविधि का सहारा ले तो उसका कार्य विशेष उपयोगी बन सकता है। ग्रियर्सन ने “पीजेंट लाइफ ऑफ बिहार" नामक कोश में इसी तुलनात्मक प्रविधि का प्रयोग किया। उसने बिहार की भोजपुरी,मगही और मैथिली बोलियों के उन शब्दों का संग्रह किया है, जो वहाँ ग्राम-जीवन में बोले जाते हैं। ग्रियर्सन के पश्चात् इस प्रकार के प्रयास बहुत कम किये गये हैं। प्रियर्सन ने तीनों बोलियों के शब्दों के तुलनात्मक अर्थ देकर अपने शब्दकोश को सामान्य जन के लिए भी उपयोगी बनाने की प्रथम चेष्टा की थी। दुःख का विषय है कि हमारे शोधार्थी उपाधि को जितना प्यार करते हैं, उतना प्यार जनता से नहीं करते, जन-कल्याण में अपनी साधना का नियोजन नहीं करते। शब्द-कोश का निर्माण करते समय शोधार्थी को पूर्ववर्ती कार्यों का सर्वेक्षण सावधानीपूर्वक करना चाहिए, ताकि अपने शोध-कार्यों में प्रवृत्त होते समय वह दिग्भ्रमित न हो। साहित्यिक रचनाओं से शब्द-संग्रह करते समय भी एक संकट उत्पन्न होता है। प्राचीन ग्रन्थ या तो पाण्डुलिपि के रूप में मिलते हैं, या प्रकाशित अवस्था में भी। सभी प्रन्थों का सम्पादन पाठालोचन-पूर्वक नहीं हुआ है। ऐसी स्थिति में जो शब्द संग्रहीत किये जाते हैं.उनके उच्चारण, रूप और अर्थ तीनों के ही बदल जाने का खतरा बराबर बना रहता है । अतः शब्द-कोश के निर्माता को पाण्डुलिपियों के पढ़ने का भी अच्छा ज्ञान होना चाहिए। वह जब तक स्वयं पाण्डुलिपि-सम्पादन की कला में दीक्षित नहीं होगा, तब तक शब्द-कोश-सम्बन्धी शोध-कार्य प्रामाणिक नहीं हो सकता। लिखित साहित्य से शब्द-चयन करते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कवि या लेखक किस क्षेत्र की बोली या भाषा से प्रभावित है ? उदाहरणार्थ, एक कवि पहाड़ी क्षेत्र का निवासी है, तो उसकी भाषा में पहाड़ी बोलियों की शब्दावली का प्रभाव और शब्द-प्रयोग दोनों ही मिल सकते हैं। ऐसी स्थिति में शब्दकोश के शोधार्थी को उस क्षेत्र की बोलियों से भी परिचय प्राप्त करना चाहिए, भले ही वह अपने अध्ययन-कक्ष में बैठकर लिखित साहित्य से शब्दों का चयन कर रहा हो। इसी प्रकार कुछ लेखकों की मातृभाषा भिन्न होती है। कोई मराठीभाषी हिन्दी लेखक जब रचना करता है, तब बहुत संभावना रहती है कि वह मराठी-शब्दावली का यत्र-तत्र अपनी रचनाओं में प्रयोग करे। ऐसे शब्द उच्चारण आदि में कुछ बदले हुए भी हो सकते हैं तथा मराठी का कोई शब्द हिन्दी के किसी शब्द For Private And Personal Use Only
SR No.020048
Book TitleAnusandhan Swarup evam Pravidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamgopal Sharma
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1994
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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