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(vi) किन्तु पुस्तक लिखने के मूल लक्ष्य से बहुत दूर चला जाता, जो नितान्त अनुचित कार्य होता। अतः प्रत्येक पक्ष को सारगर्भित रूप में ही प्रस्तुत करने की चेष्टा की गई है।
आशा है मूल विषय को केन्द्र में रखकर की गई सीधी-सीधी इस संक्षिप्त चर्चा से मानविकी विषयों के शोध-विद्यार्थी लाभान्वित होंगे और अपने अनुसन्धान कार्य को अधिक संयत, तर्क-संगत, गंभीर, निष्कर्षोन्मुखी तथा समाज-कल्याण के लिए उपयुक्त बना सकेंगे।
अन्त में उन विद्वानों के प्रति हृदय से कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ, जिनके विद्वत्तापूर्ण विचारों से इस ग्रंथ की रचना में ज्ञाताज्ञात रूप में मुझे सहायता मिली है।
उदयपुर (राज)
-डॉ. रामगोपाल शर्मा 'दिनेश'
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