________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
44/अनुसंधान : स्वरूप एवं प्रविधि चित्रकला में शोध की प्रविधि
प्रश्न यह उठता है कि इतिहास, दर्शन, संगीत, साहित्य आदि से इतना अधिक सम्बद्ध चित्रकला की शोध-प्रविधि इन विषयों की शोध-प्रविधि से किन बातों में भिन्न हो सकती है ?
वस्तुतः समानता के अनेक तत्त्व होते हुए भी चित्रकला की शोध-प्रविधि में कई बातों में मौलिक अन्तर मिलता है। चित्रकार साहित्य, इतिहास, संगीत तथा दर्शनशास्त्र की तरह शब्द और स्वर पर निर्भर नहीं होता। उसकी निर्भरता मूलत: फलक, तूलिका और रंग-रेखाओं पर होती है । शोधकर्मी को इन्हीं के सहारे कला के मर्म तक पहुँचना होता है । एक ओर तो वह कला के इतिहास की खोजबीन ऐतिहासिक पद्धति से करता ही है, दूसरी
ओर वह रूप-रंग की पहचान के माध्यम से कला के सौन्दर्य-तत्त्व का पता लगाता है । कलात्मक बिम्बों का सम्यक् आकलन करने के लिए शोधकर्ता को कलाकार के मानस की गहराइयों में भी उतरना होता है। अतः चित्रकला के क्षेत्र में शोध-कार्य पर्याप्त दुरूह हो जाता है।
सामान्यतः चित्रकला के शोधकर्ता के लिए विभिन्न कलात्मक शैलियों के अनुसंधान के मार्ग खुले होते हैं। किसी भी चित्र-शैली का ऐतिहासिक विकास खोजना और तत्कालीन एवं समकालीन संदों में उनका मूल्यांकन करना चित्रकला-सम्बन्धी शोध-कार्य की एक महत्त्वपूर्ण पद्धति बन गई है। सौन्दर्य-मूलक पद्धति से भी चित्रकला के क्षेत्र में शोध की जा सकती है। कलाकार की सौन्दर्य-सम्बन्धी दृष्टियों का अनावरण करने के लिए शोधकर्ता को चित्र की रूपरेखा,रंग-शैली, भाव-चित्रण आदि पर तुलनात्मक पद्धति से ध्यान केन्द्रित करना पड़ता है। विभिन्न चित्रकारों की कला-शैलियों के मध्य समानता-विभिन्नता एवं मौलिकता के तत्त्वों का पता लगाने के लिए साहित्यिक ढंग से विवेचना भी आवश्यक होती है । अध्ययन के परिणामों पर पहुँचकर अंत में मौलिक निष्कर्ष देना भी शोध-प्रविधि का एक अंग माना जाना चाहिए । संगीतकला और शोध
चित्रकला से भी अधिक व्यापक क्षेत्र संगीत कला का माना जाता है । संगीत का एक पूर्व निर्धारित शास्त्र तो होता ही है, साथ ही मौलिक संगीतकार नये शास्त्र को भी जन्म देते हैं। शोधकर्ता के लिए विभिन्न राग-रागनियों के इतिहास को समझकर उनके विकास एवं सिद्धान्तों का अन्वेषण आवश्यक होता है । काव्य और संगीत का अत्यधिक अभिन्न सम्बन्ध है । स्वर, लय, छंद आदि की दोनों कलाओं में आवश्यकता होती है। अतः संगीत की गायन-शाखा में शोध का कार्य अधिकांशतः काव्य-सम्बन्धी अनुसंधान की तरह ही चलता है । वाद्य संगीत का विधान अवश्य भिन्न होता है और इसके लिए परम्परागत तथा नव-प्रयुक्त वाद्य-सिद्धान्तों का शास्त्रीय पद्धति से अन्वेषण करना होता है।
For Private And Personal Use Only