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प्रकाशकीय भूमिका
राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी अपनी स्थापना के 24 वर्ष पूरे करके 15 जुलाई, 1993 को 25वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है। इस अवधि में विश्व-साहित्य के विभिन्न विषयों के उत्कृष्ट ग्रन्थों के हिन्दी अनुवाद तथा विश्वविद्यालय के शैक्षणिक स्तर के मौलिक ग्रन्थों को हिन्दी में प्रकाशित कर अकादमी ने पाठकों की सेवा करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है और इस प्रकार विश्वविद्यालय-स्तर पर हिन्दी में शिक्षण के मार्ग को सुगम बनाया है।
___ अकादमी की नीति हिन्दी में ऐसे ग्रन्थों का प्रकाशन करने की रही है जो विश्वविद्यालय के स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के अनुकूल हो । विश्वविद्यालय-स्तर के ऐसे उत्कृष्ट मानक-ग्रन्थ, जो उपयोगी होते हुए भी प्रकाशन की व्यावसायिकता की दौड़ में अपना समुचित स्थान नहीं पा सकते हों और ऐसे ग्रन्थ भी, जो अंग्रेजी की प्रतियोगिता के सामने टिक नहीं पाते हों; अकादमी प्रकाशित करती है । इस प्रकार अकादमी ज्ञान-विज्ञान के हर विषय में उन दुर्लभ मानक-ग्रन्थों को प्रकाशित करती रही है और करेगी; जिनको पाकर हिन्दी के पाठक लाभान्वित ही नही; गौरवान्वित भी हो सकें। हमें यह कहते हुए हर्ष होता है कि अकादमी ने 375 से भी अधिक ऐसे दुर्लभ और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों को प्रकाशित किया है जिनमें से एकाधिक केन्द्र, राज्यों के बोर्डों एवं अन्य संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत किये गये हैं तथा अनेक विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा अनुशंसित।
राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी को अपने स्थापना काल से ही भारत सरकार के शिक्षा मन्त्रालय से प्रेरणा और सहयोग प्राप्त होता रहा है तथा राजस्थान सरकार ने इसके पल्लवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, अतः अकादमी अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में उक्त सरकारों की भूमिका के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती है।
_“अनुसंधान : स्वरूप एवं प्रविधि" नामक पुस्तक का प्रथम संस्करण प्रकाशित करते हुए हम हर्ष का अनुभव कर रहे है । प्रस्तुत पुस्तक में अनुसंधान के स्वरूप एवं प्रविधि पर प्रकाश डाला गया है। लेखक द्वारा इस बात की पूर्ण चेष्टा की गई है कि मूल विषय अनावश्यक उद्धरणों से बोझिल न होने पाये तथा शोधकर्मी इससे पूर्ण लाभान्वित हो सकें।
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