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32 / अनुसंधान : स्वरूप एवं प्रविधि
का प्रयास करना होता है कि जो भी लिखित सामग्री मिले, उसका एकाधिक प्रतियों में मिलान किया जाये । इन प्रतियों में लिपि का बहुत अन्तर होता है तथा कभी-कभी कुछ प्रतियाँ खण्डित भी मिलती हैं, कभी-कभी पुरानी प्रतियों में ऐसी प्रतियाँ भी मिलाकर रख दी जाती हैं जिनको किसी व्यक्ति ने बहुत समय पश्चात् लिपिबद्ध किया है। ऐसी पाण्डुलिपियाँ भी मिलती है, जिन पर लिपिकाल पुराना डालकर प्राचीनता का भ्रम उत्पन्न किया जाता है | अतः लिखित सामग्री से ऐतिहासिक तथ्यों की उपलब्धि के लिए बहुत परिश्रम, ज्ञान, अभ्यास और विवेक की आवश्यकता होती है ।
जहाँ प्राचीन काल के इतिहास से सम्बन्धित सामग्री विभिन्न स्रोतों के आधार पर बहुत बाद में लिपिबद्ध की गई है, वहीं यह समस्या भी है कि मध्यकालीन इतिहास की पर्याप्त सामग्री अरबी-फारसी भाषाओं और लिपियों में है । अत: इतिहासकार को इन भाषाओं का ज्ञान भी अपेक्षित होता है। जो शोधार्थी मध्यकालीन इतिहास पर शोध करना चाहते हैं, उन्हें तो अरबी-फारसी भाषाओं का अच्छा ज्ञाता होना ही चाहिए, अन्यथा उनका शोध कार्य पूर्णतः मौलिक एवं प्रामाणिक नहीं हो सकता ।
मध्यकालीन इतिहास के तत्कालीन लेखक भी प्रायः विदेशी आक्रान्ताओं के चाटुकार रहे हैं । अतः उन्होंने वही लिखा है कि जो वे आक्रान्ता शासक चाहते थे । ऐसी स्थिति में उनकी लिखित सामग्री पर पूर्णतः विश्वास करके इतिहास का शोध कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता। शोधार्थी को उन इतिहासकारों से प्राप्त सामग्री की भी भली प्रकार छानबीन करनी होती है तथा अन्य उपलब्ध स्रोतों से भी उनका मिलान करना होता है।
पुरालेखागारों की सामग्री
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इतिहास - सम्बन्धी शोध के लिए पुरालेखागारों की सामग्री बहुत उपयोगी सिद्ध होती है । प्राचीन इतिहास से सम्बन्धित सामग्री तो ऐसे स्थानों पर कम ही मिल सकती है, किन्तु मध्यकालीन एवं स्वतन्त्रता से पूर्व तथा उत्तरकालीन सामग्री तो प्रचुर मात्रा में तथा प्रामाणिक रूप में भी उपलब्ध होती है । इस सामग्री में लिखित आज्ञाएँ, पट्टे-परवाने आदि भी सम्मिलित होते हैं । इन सबकी छानबीन कर शोधार्थी को अपने विषय से सम्बन्धित तथ्य एकत्र करने होते हैं ।
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पुरा-संग्रहालय
प्राचीन एवं मध्यकाल की अनेक वस्तुओं को सुरक्षित रखने के लिए पुरा - संग्रहालय भी स्थापित किये गये हैं । इन संग्रहालयों की सामग्री इतिहास के शोधार्थी के लिए बहुत उपयोगी होती है। इन संग्रहालयों में प्राचीन लिपियों में उत्खनित शिलालेख भी होते हैं जिनको पढ़ सकने की योग्यता भी शोधार्थी को शोध कार्य आरम्भ करने से पूर्व अर्जित करनी होती है ।
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