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22/अनुसंधान : स्वरूप एवं प्रविधि लेती है। यह अवश्य सत्य है कि दोनों में मानस-विम्ब समान रूप से स्थान पाते हैं। संगीत में साहित्य की शब्दार्थ-शक्ति एवं लय काम करती है। किन्तु दर्शन में चिन्तन-पक्ष प्रधान होकर कल्पना एक सिद्धान्त का रूप ग्रहण करती है। कल्पना-तत्त्व इतिहास में भी पाया जाता है, किन्तु उसका अतिरेक वर्जित रहता है।
साहित्य,ललित-कलाएं चित्र,संगीत,नृत्य आदि), इतिहास तथा दर्शन का परस्पर गहरा सम्बन्ध है। साहित्य मानव के भावों, अनुभवों और विचारों की कल्पना-परिपुष्ट अभिव्यक्ति है । यह सामग्री विभिन्न कलाओं, दर्शन तथा इतिहास से आती है। समाज में जो कुछ घटित होता है वह साहित्य और इतिहास दोनों का विषय बनता है। प्रकृति का भी इन सभी विषयों से गहरा सम्बन्ध रहता है। विभिन्न कलाओं में कलाकार की अनुभूतियं अभिव्यक्ति पाती है और साहित्य में भी ये अनुभूतियाँ समाज में घटित जीवन का ही प्रतिबिम्ब होती हैं। इन्हीं से हमारे चिन्तन का विस्तार होता है और इन्हीं से दर्शनशास्त्र विकास-यात्रा पूरी करता है । अनुभव ही चिन्तन का प्रेरक और पुष्टिकर्ता है तथा चिन्तन ही दर्शनशास्त्र की आधारशिला है। साहित्य तथा कलाएं भी दार्शनिक विचारों को अपने मूल में जन्म देती हैं। इतिहास उन सब का संचय करता है। केवल राजाओं-महाराजाओं के जीवन-वृत्त संचित करना ही इतिहास का काम नहीं है, उसे मनुष्य की सांस्कृतिक यात्रा का पूरा विकास भी प्रस्तुत करना होता है तथा उसकी सुरक्षा भी करनी पड़ती है। अतः साहित्य, इतिहास, दर्शन तथा विभिन्न कलाएँ परस्पर सम्बद्ध हैं। मानविकी क्षेत्र के ये विषय मनुष्य को मनुष्य बनाते हैं तथा उसके लिए श्रेष्ठ जीवन की भूमिका प्रस्तुत करते हैं।
साहित्य एक व्यापक शब्द है। इस शब्द की अर्थ-व्याप्ति अनेक रूपात्मक है। सामान्य भाषा में हर प्रकाशित कृति को साहित्य कहा जाता है। किन्तु काव्य, कथा, नाटक आदि के अर्थ में साहित्य का सीमित अर्थ ही ग्रहण किया जाता है। इसी अर्थ में हमारा प्रस्तुत अध्ययन सीमित है। इस अर्थ में साहित्य की आधारगत त्रिवेणी इतिहास, दर्शन एवं कला ही है। साहित्य में घटनाओं को स्थान मिलता है । घटनाएँ भूत या वर्तमान का इतिहास होती हैं। कभी कभी तो प्रत्यक्षतः ऐतिहासिक घटनाओं पर ही, उपन्यास, नाटक, काव्य आदि लिखे जाते हैं। इतिहास भी विभिन्न घटनाओं को प्रस्तुत करते समय जीवन के मर्म तक जाता है। उसमें किसी घटना-विशेष के पीछे छिपे मानवीय व्यवहारों की भी समीक्षा रहती है । अतः साहित्य और इतिहास की विषयगत ही नहीं, विवेचनगत प्रवृत्ति में भी कई तत्त्व समान होते हैं। जहाँ तक अभिव्यक्ति-पक्ष का प्रश्न है, साहित्य से इतिहास भिन्न शैली अपनाता है। वह सत्य की ओर अधिक मुड़ता है,जबकि साहित्य सत्य की संभावनाओं का भी पता लगाता है, इसलिए उसके आधार में निहित होकर कल्पना अभिव्यक्ति की शैली बदल देती है।
दर्शनशास्त्र में जीवन जगत् और ईश्वर-सम्बन्धी जो चिन्तन रहता है, वह मनुष्य-जीवन की घटनाओं की प्रेरणा से ही आता है। मनुष्य सुख-दुःख की विभिन्न
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