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अनुसंधान की प्रविधियाँ
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अनुसंधान एक कठिन कार्य है। यह कार्य जहाँ से आरम्भ होता है और एक लम्बी यात्रा के पश्चात् जहाँ पूर्ण होता है, वहाँ तक शोधकर्ता को निरन्तर सतर्क होकर विषय के विभिन्न पक्षों का अवलोकन करते हुए सत्य-संग्रह करना पड़ता है। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह एक सुनिश्चित ढंग से कार्य करे, ताकि वह इधर-उधर न भटक जाए। इसी सुनिश्चित ढंग को शास्त्रीय शैली में “प्रविधि" कहा जाता है। यह शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त हो सकता है तथा भ्रम भी पैदा कर सकता है। इसलिए अनुसंधानप्रविधि की अर्थ-सीमा को भली-भाँति समझ लेना आवश्यक है।
अनुसंधान या शोध का उद्देश्य नवीन ज्ञान की प्राप्ति तक सीमित नहीं है। ज्ञान को शुद्ध करना तथा उसमें वृद्धि करना भी उसका उद्देश्य है । अतः शोधकर्ता जहाँ तक और मौलिक सिद्धान्तों की प्राप्ति करता है, वहीं नवीन और प्राचीन के अन्तर को तुलनात्मक ढंग से समझकर वास्तविक एवं उपयोगी तथ्यों तक भी उसे पहुँचना पड़ता है । सिद्धान्त का तब तक कोई महत्त्व नहीं है,जब तक व्यवहार में उसका उपयोग न हो, इसलिए अनुसंधान का विशेष बल सिद्धान्त के व्यावहारिक पक्ष पर भी रहता है । इस दृष्टि से प्रयोग-प्रक्रिया का सहारा आवश्यक हो जाता है। अधिक स्पष्टता के लिए यह कह सकते हैं कि तथ्यों की खोज करना, पूर्व ज्ञात तथ्यों का पुनराख्यान करना एवं तथ्य-खोज तथा पुनराख्यान के द्वारा सिद्धान्त निर्माण करना भी अनुसंधान का लक्ष्य रहता है।
लक्ष्य के अनुसार ही अनुसंधान-प्रविधि में कुछ विद्वान् निम्नांकित तीन बातों को मुख्य मानते हैं• 1. अनुसंधानकर्ता का प्रशिक्षण,शोध-प्रवृत्ति एवं प्रयोजन की स्पष्टता । • 2. अवधारणा का सुचारू निर्धारण । 3. आधार-सामग्री का संगठन, विश्लेषण, विवेचन एवं प्रस्तुतिकरण सम्बन्धी
पद्धतियाँ।
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