________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
10/अनुसंधान : स्वरूप एवं प्रविधि से सतत् साधना के साथ शोध का कार्य न किया जाए। इस प्रकार के शोध-कार्यों के लिए समय की सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती। उपाधियों के लिये भी इस प्रकार के शोध-कार्य नहीं हो सकते, क्योंकि इनमें कभी-कभी पूर्ण जीवन ही होम देना पड़ता है। 2. ऐतिहासिक शोध
भूतकाल में संसार का इतिहास जिन-जिन दिशाओं में प्रगति कर चुका है, उन सभी दिशाओं में मनुष्य के प्रमाणित प्रयल और कार्य सम्पन्न हुए हैं। ये कार्य वैज्ञानिक, समाजशास्त्रीय साहित्यों, भाषाओं,कलाओं आदि के विभिन्न विषयों में किये गये हैं। इन्हीं प्रयत्नों और कार्यों से मानव-संस्कृति और सभ्यता का अब तक का विकास सम्भव हुआ है। इस समस्त विकास का प्रत्येक विषय के क्षेत्र में निर्धारित परिकल्पना के आधार पर वैज्ञानिक पद्धति से अन्वेषण करना और मौलिक निष्कर्षों तक पहुँचना ऐतिहासिक शोध कहा जा सकता है।
3. मूल्य-परक शोध
ऐतिहासिक शोध का क्षेत्र बहुत विस्तृत होता है। वह काल की सुदीर्घ परम्परा से भी जुड़ा हो सकता है। किन्तु एक क्षेत्र विशेष में एक काल-खण्ड चुनकर किसी निश्चित परिकल्पना के आधार पर जब मूल्यों की खोज की जाती है, तब उसे मूल्य-परक शोध कहा जा सकता है। उदाहरण के लिए, हम किसी काल-विशेष की कला-कृतियों में मानव के सौन्दर्य-बोध की खोज करें, तो वह मूल्य-परक शोध की श्रेणी की शोध होगी। इसी प्रकार किसी साहित्य में हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को खोजने का प्रयास मूल्य-परक शोध की सीमा में ही आयेगा।
4. व्याख्यात्मक शोध
शोध का एक प्रकार वह भी होता है, जब हम किसी उपलब्ध ज्ञान की व्याख्या करके मौलिक तथ्यों का प्रतिपादन करते हैं। यह स्थिति सभी विषयों में तब तक बनी रहती है, जब तक उचित व्याख्या के अभाव में हम अज्ञान का अनुसरण करते रहते हैं। किसी भी जाति को सदियों की गर्त से बाहर निकालकर एक निर्मल दृष्टि देने के लिए व्याख्यात्मक शोध की आवश्यकता होती है। ज्ञान-विज्ञान की अनेक उपलब्धियाँ मानवीय व्यवहार से या कभी-कभी काल-यात्रा के साथ समाज में दूषित वातावरण पैदा कर देती हैं या अन्धानुकरण की शरण बन जाती है। ऐसी स्थिति में यदि मानव के अन्ध ज्ञान की पुनर्व्याख्या न की जाये, तो समस्त ज्ञान ही अज्ञान बन जाता है ! 5. सर्वेक्षणात्मक शोध
संसार में निरन्तर ज्ञान-वृद्धि हो रही है। मानव समुदायों का विकास हो रहा है, सामाजिक और वैयक्तिक समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं । ऐसी स्थिति में सर्वाधिक प्राथमिकता
For Private And Personal Use Only