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अनुसंधान की परिभाषा एवं उद्देश्य/3 बादरायण के ब्रह्म-सूत्रों की शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, निम्बार्काचार्य, मध्वाचार्य, बल्लभाचार्य आदि दार्शनिकों ने अपनी-अपनी दृष्टि से युगानुरूप व्याख्या की, जो उनकी मौलिक शोध-दृष्टि की परिचायिका सिद्ध हुई । इसी प्रकार कात्यायन के वार्तिकों की महर्षि पतंजलि द्वारा की गई व्याख्याएँ मौलिक शोध का परिचय देती हैं। ये सब ऐसे उदाहरण है,जो अनुसंधान के क्षेत्र में भी आते हैं, अतः शोध और अनुसंधान शब्दों का प्रयोग इस ग्रन्थ में सर्वत्र समान अर्थ में किया गया है। विश्वविद्यालयों में भी, जहाँ अनुसंधान कार्य होता है,शोध और अनुसंधान शब्दों को समान अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है तथा अंग्रेजी के "रिसर्च' शब्द का ये दोनों शब्द स्थान लेते हैं।
तीसरा शब्द “खोज" भी अनुसंधान के लिए प्रयुक्त होता है, किन्तु इस शब्द की अर्थ-व्यापकता सीमित है। किसी मौलिक एवं सर्वथा नूतन ज्ञान का निर्माण “खोज" का अन्तिम लक्ष्य नहीं है, केवल अज्ञात को ज्ञात बना देना मात्र “खोज" को कार्य-सीमा है। चौथा “अन्वेषण" शब्द भी अनुसंधान के अर्थ को सीमित अर्थ में व्यक्त करता है। यह शब्द भी “अनु” उपसर्ग लगाकर “ऐषण” (एषणा) शब्द से बना है जिसका सामान्य अर्थ होता है-पीछे लगने की इच्छा, पता लगाने या खोज करने का कार्य, जो अनुसंधान की
ओर ही संकेत करता है। जो ज्ञात नहीं है उसे जानने की इच्छा इस शब्द के भाव में छिपी है। जो मिला नहीं है, उसे खोजना है और यह कार्य “शोध” और “अनुसंधान” शब्दों का ही विषय है, जो “अन्वेषण” से अधिक व्यापक अर्थ देते हैं। सामान्यतः “गवेषणा" शब्द भी इसी अन्वेषण के अर्थ में प्रयुक्त होता है। एक अन्य शब्द "अनुशीलन" भी “शोध" के लिए प्रयुक्त होता है । इस शब्द का अर्थ सतत् अभ्यास, मनन, चिन्तन, विचरणा आदि तक सीमित है।
उपरोक्त विवेचन के पश्चात् अनुसंधान (शोध) की परिभाषा इस प्रकार निर्धारित की जा सकती है कि जब किसी अज्ञात तथ्य की कठोर परिश्रमपूर्वक विवेक और एकनिष्ठ भाव से खोज की जाती है तथा उस खोज के आधार पर प्राप्त तथ्य को पूर्णत: शुद्ध करके इतना प्रामाणिक बनाया जाता है कि वह मौलिक स्वरूप ग्रहण कर ले, तब उस कार्य को अनुसंधान कहा जाता है। यदि कोई शोधकर्ता किसी ज्ञात तथ्य की एकाग्र भाव से किसी शुद्ध लक्ष्य की सिद्धि के लिए ऐसी नवीन व्याख्या प्रस्तुत करता है,जो प्रमाण-पुष्ट होकर तथा तर्क की कसौटी पर खरी उतर कर पूर्णतः विश्वसनीय बन जाती है, तब वह व्याख्या भी अनुसंधान या शोध की परिभाषा में आती है। इस प्रकार अनुसंधान की परिभाषा में जिज्ञासा-पूर्ण परिश्रम, तटस्थ दृष्टि एवं विवेकपूर्ण परीक्षण का मौलिक ज्ञान के लिए समावेश होता है। अनुसंधान का उद्देश्य
अनुसंधान का सत्यान्वेषी और सत्य-संशोधन कार्य इतना महत्त्वपूर्ण है कि उसके उद्देश्य को समझना कठिन नहीं रह जाता । मानव-जीवन का सम्यक निर्वाह उसके वैयक्तिक
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