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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिन्दी-अनुसंधान : विकास, उपलब्धियाँ और सुझाव/103 की विभिन्न परिस्थितियों का सापेक्ष आकलन और उनके संदर्भ में तुलसी-साहित्य की मीमांसा इस ग्रंथ की एक महत्त्वपूर्ण देन है। इस ग्रंथ के एक वर्ष पश्चात् जो अन्य महत्त्वपूर्ण शोधकृति प्रकाश में आई, वह है आचार्य परशुराम चतुर्वेदी कृत “मानस की रामकथा"। इस ग्रंथ के प्रथम प्रकरण में तुलसी के जीवन और कृतियों पर विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर विचार किया गया है। अन्य प्रकरणों में तुलसी के शिल्प आदि पर प्रकाश डालकर मानस की कथा के मर्म का उद्घाटन किया गया है। कथा-विवेचन की यह परम्परा कामिल बुल्के से प्रारम्भ हुई थी, जिसकी तीसरी कड़ी है- श्रीशकुमार का “मानस-बालकाण्ड स्रोत नामक ग्रंथ" । इस शोध-ग्रंथ में बालकाण्ड की कथाओं का अत्यंत प्रामाणिक ढंग से विवेचन किया गया है। छठे दशक से अब तक तुलसी-सम्बन्धी शोध-कार्य ने अनेक दिशाओं में विस्तार पाया है। विभिन्न विश्वविद्यालयों में तुलसी के जीवन और साहित्य के विभिन्न पक्षों को लेकर शोध-ग्रन्थ लिखे गये हैं,जिनमें कुछ प्रकाशित भी हो चुके हैं । किन्तु अधिकांश ग्रन्थों से पूर्वज्ञात तथ्यों का संकलन मात्र मिलता है। अतः मौलिक शोध की दृष्टि से सभी ग्रंथ महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। जो विशेष उल्लेखनीय माने जा सकते हैं उनमें कतिपय ग्रन्थ ये हैं-तुलसीदास की भाषा (डॉ. देवकीनंदन श्रीवास्तव), रामचरित मानस : काव्यशास्त्रीय अनुशीलन, (डॉ. रामकुमार पाण्डेय), वाल्मीकि और तुलसी : साहित्यिक मूल्यांकन (डॉ. रामप्रकाश अग्रवाल), तुलसी की कारयत्री प्रतिभा का अध्ययन (डॉ.श्रीधरसिंह), तुलसी की काव्य-कला (डॉ.भाग्यवतीसिंह), तुलसी के भक्त्यात्मक गीत (डॉ.वचनदेव कुमार) रामचरित मानस का तुलनात्मक अध्ययन (डॉ. शिवकुमार शुक्ल), तुलसी-दर्शन मीमांसा (डॉ. उदयभानुसिंह), तुलसी काव्य-मीमांसा (डॉ. उदयभानुसिंह), रामचरित मानस में भक्ति (डॉ. सत्यनारायण शर्मा) तथा 'रामचरित मानस में अलंकार योजना' (डॉ. वचनदेव कुमार)। ऊपर जिन महत्त्वपूर्ण शोध-ग्रंथों के नाम गिनाये गये हैं,उनमें डॉ. वचनदेव कुमार का शोध-कार्य विशेष उल्लेखनीय है। डॉ. कुमार ने अपने शोध-प्रबंध “तुलसी के भक्त्यात्मक गीत” में प्रथम बार गीतों के माध्यम से तुलसी की भक्ति-साधना का मर्म पाठकों तक पहुंचाया है। उन्होंने विद्वत्ता-पूर्वक ऋग्वेद से निःसृत भक्तिधारा का मध्यकाल तक अखंड प्रवाह खोजकर तुलसी के गीत-काव्य में उसकी समृद्धि प्रामाणिक रूप में आकलित की है। अपने द्वितीय शोध-ग्रंथ में डॉ. कुमार ने, रामचरितमानस को शास्त्रीय दृष्टि से समझने के लिए शिल्प के महत्त्वपूर्ण पक्ष, अलंकार का विस्तार एवं गाम्भीर्य उद्घाटित किया है। (5) शोध की उपलब्धियाँ पाश्चात्य एवं प्राच्य विद्वानों ने जिस समय तुलसी सम्बन्धी अनुसंधान प्रारम्भ किया, उस समय तक तुलसी अद्वैतवादियों के ब्रह्म की तरह गंभीर जिज्ञासा का विषय बने हुए थे। भक्तमाल, दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता इत्यादि हस्तलिखित पुस्तकों में उनके सम्बन्ध में जो जानकारी अंकित थी वह भी प्रचार नहीं पा सकी थी। केवल वे जन-श्रुतियाँ ही उनको समझने का एकमात्र साधन थीं, जिनमें चमत्कारपूर्ण अनेक कल्पित बातों का For Private And Personal Use Only
SR No.020048
Book TitleAnusandhan Swarup evam Pravidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamgopal Sharma
PublisherRajasthan Hindi Granth Academy
Publication Year1994
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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