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८६ अयकसंग्रहः
शूले हिंगु घृतान्वितं च कथितं कृष्णा पुराणज्वरे वाते साज्यरसोनकः श्वसनके क्षौद्रान्वितं त्र्यूषणम् । शीते व्याललतादलं समरिच मेहे वरा सोपला दापाणां त्रितयेऽनुपानमुचितं सक्षौद्रमाोदकम् ॥३१॥
शूल रोगमें घृतयुक्त हिंगु, पुराण ज्वरमें पिप्पली, वागरोगमें वृतयुक्त लहसुन, श्वसनक रोगमें मधुयुक्त त्रिकटु, शीतरोगमें मरिचयुक्त बृहतीपत्र, प्रमेह रोगमें शर्करायुक्त त्रिफला, और त्रिदोष प्रकोपमें मधुयुक्त आईकस्वरस सर्वश्रेष्ठ अनुपान है ॥३१॥
घनपर्पटकं ज्वरे ग्रहण्यां मथितं हेम विषे वमीपु लाजाः । कुटजोऽतिस्रुतौ वृषोऽस्रपित्ते गुदकीलेवनल: कृमौ कृमिघ्नः ॥३२।।
ज्वरमें मुस्ता और पर्पटक, ग्रहणीरोगमें मथित, विषमें सुवर्ण, वम में कमलबीजके लाजा, अतिसारमें कुटज, रक्तपित्तमें वसा, अर्शोरोगमें भल्लातक तथा कृमिरोगमें विडंग सर्वश्रेष्ठ अनुपान है ॥३२||
सूतो विस्फोटवातेषु व्रणेषु दम्भनक्रिया । रक्तस्रावे चाइमभेदः तथा वृकि? विसूचिके ॥३३॥
विस्फोटक वातमें पारद, व्रणमें अग्निकर्म, रक्तस्राव, अश्मभेद, तथा विसूचिकामें बृकि ? सर्वश्रेष्ठ अनुपान है ॥३३॥
वातरक्ते बलिं दद्यात् शिरोरोगेषु शुठिकाम । अश्मर्या च तथा कृच्छ्रे हेमाहरीतकी बलिम् ॥३४॥
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