________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अभ्रकको अर्कक्षीरमें दिनभर पीसकर चक्रिका बनावे' । तदनन्तर उसको अर्कपत्रसे वेष्टित करके गजपुटमे' अग्नि देना चाहिए । इसी प्रकारसे सातवार मर्दन और गजपुटमे अग्नि देनेसे अभ्रकका अवश्य मारण होता है । इसको विविध रोगोंमें योग्य अनुपान के साथ देना चाहिए ॥१८-१९॥
८० अभ्रकसेवनलाभः
अभ्रक मदनदीप्तिकर मतमायुष्कर चौव बलावह च । तक्रमेहमधुमेहनाशनं चांगनामदनमेहनाशनम् ॥२० ।
अभ्रक कामोरोजक, आयुष्कर, बलप्रद और हितकारी है । तक्रमेह, मधुमेह तथा अंगनामदनमेह ( योनिमेह ) का शमन करता है ॥२०॥
८१ तालशोधनम्
पीतं तालं बद्धवा वस्त्रे तिलतैले च क्षेपयेत् । तन्मध्ये दिनसप्तैव रक्षणीया भिषग्वरैः ॥२१॥
कलिचूर्णे पुनः खण्डे चणकायाः जले तथा सप्तसप्तदिनं कुर्यात् शुद्धं भवति तालकम् । २२।।
पीत हरतालको वस्त्रमें बांधकर तिलतैल, कलिचूर्ण, शर्करा तथा चणक जल-प्रत्येकमें सात सात दिन पर्यन्त रखनेसे हरताल शुद्ध होती है ॥२१-२२
For Private And Personal Use Only