SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० लोहस्य रोगानुसारी सानुपानोपयोगः अनुपानेन व्याधौ तु दीयते च पृथक् पृथक् । मधुनि त्रैफले तके पाण्डुरोग विनाशयेत् .. ५। मारित लोहको रोगानुसारी अनुपान के साथ देना चाहिए और मधु, त्रिफलाक्वाथ अथवा तक्रके साथ देनेसे पाण्डुरोगका शमन होता है ॥५॥ ७१ लोहप्रशंसा आयुःप्रदाता बलवीर्यकर्ता रोगप्रहर्ता मदनस्य कर्ता । अयःसमानं नहि किंचिदन्यत् रसायनं श्रष्ठतमं हितं च ।।६।। आयुष्प्रद, बलप्रद, वीर्यप्रद, रोगनाशक तथा कामवृद्धिकर लोहके समान श्रेष्ठ और हितकर अन्य कोई रसायन नहीं है ॥६॥ ७२ त्रपुमारणम् सूक्ष्माणि त्रपुपत्राणि कारयेच्च सदा बुधः । शुष्कपिचुमन्दपत्रे छगणद्वयसम्पुटे ||७|| श्वेतवर्ण भवेद्वगं चाम्नियोगेन तत्क्षणात् । तद्वच्च तिलखलेन मेन्दीपत्रे तौव च । ८॥ अंगके सूक्ष्म पत्र बनाकर शुष्क निम्ब पत्रमें रखकर दो उपलों के सम्पुटमें अग्नि देनेसे तत्क्षण श्वेतवर्णकी बंग भस्म बन जाती है । इस प्रकार तिलखल अथवा शुष्क मेन्दीपत्रके साथ पुट देनेसे भी बंगका मारण होता है ॥७-८॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020047
Book TitleAnupan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishram Acharya
PublisherGujarat Aayurved University
Publication Year1972
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy