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प्रास्ताविक
आयुर्वेद के प्राचीन हस्तलिखित पुस्तकोंमें गुजरात प्रान्तके विशिष्ट विज्ञानकी विशिष्ट कृतिके रूपमें सन १९३९ में गोंडल रसशाला औषध आश्रम के अध्यक्ष माननीय शास्त्री जीवराम कालीदासजी ने व्याधिनिग्रह नामक पुस्तक प्रकाशित की। इस पुस्तकके लेखक आचार्य श्री विश्रामजी कच्छ प्रदेशके अंजार नामक नगरके निवासी थे ।
जामनगरमें तत्कालीन स्थापित संस्था श्री गुलाबकुवरबा आयुर्वेद सोमायटीने प्रधान रूपसे चरकसहिता के प्रकाशनको मुख्य लक्ष्य बनाया था परंतु व्याधिनिग्रहके प्रकाशन के अनन्तर सोसायटी के ग्रन्थागारमें विद्यमान अनुपानमंजरी नामक आचार्यश्री विश्रामीकी कृतिको प्रकाशित करने के विचारसे श्री गुलाबकुवरबा आयुर्वेद सोसायटी जामनगरके तत्कालीन प्रमुख कार्यकर्ता श्री डॉ. प्राणजोवनदास महेता के आदेश से हस्तलिखित दो प्रतियों को आधार बनाकर अनुलेखन किया गया। इस प्रकार श्री गुलाबकुंवरबा आयुर्वेद सोसायटी के ग्रन्थागारमें अनुपानमंजरीकी एक मूल हस्त प्रति, एक प्राचीन गुजराती अनुवाद सहित हस्तप्रति और दो अनुलेखन की गई हस्त प्रति इस प्रकार से चार हस्त प्रतियोंका संग्रह हो गया ।
सन १९६७ में जामनगरमें श्री गुजरात आयुर्वेद युनिवर्सिटी की स्थापनाके समनन्तर आयुर्वेदके प्राचीन पुस्तकों के प्रकाशनको भी युनिवर्सिटीके
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