SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 540
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३३ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग २५ संध्या में भोजनकस्वांरोगहोयासंध्यामैमेथुनकरयांभयंकरसंतानहो यरसंध्यामेनिद्रालियांदरिडीहोय३संध्यामपस्यांश्रायुर्बलकोक्षय होय ४ अथविचाराधिकायाहारविहारलिरात्रिमैंचांदकी चांदणीमैसूनांकामदेवकाइडिहोय अरवांचांदलीसरीरकादाह. इरिकरैछै अरअंध्यारीरातिप्रानंदादिक.रिकरैछै रात्रिकाप्रथ मपहर भोजनादिककरै पाछैसयनकरैसेदरस्थानमै पाउँसुंदर स्त्री शक्तिमाफिकसंभोगकरेजोवनवताएं अरशक्तिउपरांति संदरस्त्रियांसभीसंभोगकरैनहींपरसंभोगकैादिभैसिकोतथा गऊफोडूघोटायोमिश्रीकासंजोगकोपीचे अरसंभोगकाअंनमैं भीयोहीथरुचिमाफिकपीवतो ईपुरसकेजरापरगांकोरोगकरे भीआवेनहींइस्त्री संभोगकरैनहींयेरह वस्तपारगानेन कालहरैछैसोलिन्सूकोमांसा दृद्धिस्त्रीरसूर्यकातावडाकोसे लोश्तकालकोजमायोदहीं४प्रभातसमेमैथुनभप्रभातसमैनि दायेछहतत्कालपणा हरैछै अरउहवसतत्कालपापानेक रैसोलि तत्कालकोमांसानवीनअनरबालास्त्रीरक्षीरभोज नह नवीनतराजलसंस्नानध्येहनस्ततत्कालपागार्ने करें अथलहरितुमस्त्री संभोगकरेसोलि हिमाश्तुमें। अरसिसिरितुमैरतौआपकासरीरकीशक्तिमाफिकलारंवारसा संगकरैतोभीरोगहोपनहींशरीरमग्रानंदरहैवसंतरितुअरश रदरिनु४शक्तिमाफिकतीसरैतीस दिनस्त्रीसेवनकरैतीरोगहो यनहीं परवरितु,५ग्रीभरितुपक्षनामपंदोलिशक्ति माफिस्त्रीसेवनकरैतोरोगहोयनहीं मातरितुमैनीरात्रिीसंभोग जे ग्रीभरितुमदिन.संभोगकीजै वर्षामितुमैटिनमेंपररातिमै For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy