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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९८ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग २२ सारांनैंसहतमिहीवांटिउडदप्रमाएगगोलीकरै गोला रात्रीनैरो जीनांषायउपर धपावतीवार्यमोडोपडै परनपूंसकपणोंजाय येसर्वजतनभावप्रकाशमैलिष्याछे अथवा तिला कूकडाका अंडाकापाएगीमिजोवेवारी पाछैचातिलानेटक ५रोजीनांषाय उपरइधपादेतोनपूंसकपोजाय अरघणास्त्रीयांसंसंभोगकरै अथना विदारीकंदकोचूर्णकरै अरवेंचूर्णकालाविरारीकंदकार सकापुट सदेरसुकावतोजाय पाछै–विदारीकंदमैमिनीसहन रघृतमिलाय रोजीनारकरषायउपरडूथपीतो वूटोभीमनुष्यज वानहोयजाय योदमैलिष्योछै अथवा प्रांवलाकोचूर्णकरै पाछैईचूर्णकेश्रालाआंवलाकारसकापुटरादेरसुकायले पाई चूर्णनॉमिश्रीसहतपत रोजीनांकरपायनीबूटोभीमोस्यारहोय योचकदत्तमैंछै अथमदनमंजरीगुटिकालि सूरि मिरचि पीपलि यांनीन्यांकाच्यारिभागकरै पाराकोएकभाग अरबंगका दोयभागकरे यांसारांकाबराबरिसतावरी तज परज नागकेसरि इलायचीजायफल मिरचि पीपलि सहि लवंगजायपत्रीयांसारां कादोयभाग पाछैयांसारांमहीवांटिमिश्रीसहतधृतमैंगोली टंक ५कैअनुमानकरै पाछैगोलरोजानांषाय उपर इधपा नोबूढोभीजवानहोय इतिमदनमंजरीगुटिका० योजोग तरंगिलामैछै अथवा अफीम पारो येबराबरिले याछेयांदो न्यांनैधतूराकाबीजांकातेलमैंमर्दनकरैदिन ३पाछैईमैंमिश्रीअर भांगिबराबरिमिलायरतिपायउपरइथपावेतौनार्यप.नहीं रनपुंसकपलॉईसंजाय योसारसंग्रहगोमैछै अथवाजायफल प्राकलकरो लवंग इंडिकेसरि पीपलि कस्तूरी भीमसेनीकपूर For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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