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४४२ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग रैगलामैंजाबादेनहिंवेंकोमार्गरोकिदे ईनैवलयगलाकोरोगक हिजै - योमसाध्यछें प्रथमलासरोगको लक्षणलि० जीका गलामेंकफवायवधिकार गलामै सोजोकरै श्ररस्वासनैरपी डनैंप्रगटकरै मर्मस्थानमैंछेदताथका हियामैंपीडकरै ईनें
सरोगकहिजै ९ भएकटंदकोलक्षएालि० जीकागला मैंकफञ्चरलोही दुष्टहुका थकागला कैमांहिगोलारउंचीसोई नेंकरे दानेंलीयां अरउठेषाजिभीचाले गलोपकिजाय रगें, लोभास्यौकोमललषावै ईनेंएकटंदरोगका हजै १० अथवृंदना मगलाकारोगको लक्षएालि० जींकागला में पित्तारलोहीकोप कंप्राप्तिहोय वासंयुक्तगलामैंथिनांपीडासोजानें प्रगटकरै अर गलामैंदाहकरै अरतीयजुरनैंपदाकरै ईनेंवृंदनामगलाकोरो गकहिजै ११ प्रथशतघ्नी कोलक्षएालि• जीकागला मैं मांस कात्र्ांकूरजामाजामाकरडाकरडा कंठनेंरोकिबाबालाघणाऊ गैर वापीडघणीचा प्रारंगाने हरवावाली पारोगत्रिदोष काको पशूंहोय सोमसाध्यछे ईनॅशतघ्नीगलाकोरोगकहिजे १२ थगिलायुरोगकोलक्षालि० जीकागलायांबला कामगी प्रमाणगांठ होय अरऊंठेप्रीडकमहोय बागांठिकफ लोहीसूंहोयछै अरभोजनकरतांचावुरीलागे ईनोंगलायुरोगक हिजै १३ अथगलविद्रधीकोलक्षणलि० जीकासारागला में सोजोहोय अरउठेपीडघएगीहोय योभीत्रिदोषकाकोपसूंहोयछै ईनेंगलविद्रधिरोगकहिजै १४ अथगलौधकोलक्षणलि. जी कागलाका मार्ग मैं सोजो गोंहोय अरजी कागलामैं पवनभीजा यसकैनहीं धरतीव्रजुर होयजाय योकफलोही काडुष्टपणांसू
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