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३७४ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग अथवा कांधाकायेकदेशमै कालोफोडोहोय पीडानेलीयां वापि त्तकाकोपसंहोयछे ईनकाषोलाईकहे परकेईपाछशाकादो बसूंकाषमें फोडोहोयतीने काषोलाईकहिजे १३ अथअग्निरो हिली फुरासीत कोलक्षएालि० काषकाएकदेशमैं मांस वि दीर्णकरि वाचाला फोडाभयंकर होय परवांफोडांमेंदाहजुरभी होय अरमानुवांफोडामैच्यंगारभरिदीया ईनेमिरोहिणीक हिजै यासन्निपातसंउपजीले यामसाध्यले १४ अथचिप्यना मफुणसीतांकोलक्षगलि वायपित्तहै सोनषकामांसमैंर हकरिकें दाहनेंचरपाकनेंकरेछै नदिईनिप्यनामफुरासीनें पैदा करेछें १५ अथकुनषरोगनपजीकाजातारत्याहोयतीको लक्षणलि० वायपित्तकफयेथोडाको पकोंप्राप्तहोय नदिपुर षकैकुनषरोगनेंकरे १६ अथमनुशयीकुणसी कोलक्षा लिष्यते वाफुरासीगंभीरहोय जीकोमारंभपल्प होय सरीरका वर्णसिरीसीहोय पगमें उपरिहोय माहींजी को कोपहोय पेजी में लक्षणहोय तीअनुशयी कुणसीकहिजे १७ अथविदारि काकुणसीकोल क्षएालि• वाकुणसीविदारीकंदसिरासीगी लहोय काषकीसंधिमें अथवा जांघकी संधिमैं होय रसन्नि पातसूंउपजीहोय तीनैविदारिकाएासी कहिजे १८ अथश र्करानामपुरासीतीकोलारालि• कफमेदवाययेहैसोमा सनसांनें प्राप्तहोय गांरिने सहतसिरीसी अथवा घृतसि रीसी अथवा बसासिरीसीनेंपैदाकरैके सोवागांरिवधाथकीमै लालोहानेंचलावेछे परसरीरकामांस सुकायदेछे तीने शर्क राङ्कुणसीकहिजे १९ अथशर्करार्बुद फुणसीकोलक्षण
लिप्यते
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