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३७२ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग माछी होय इनेलोकिक मैंबोदरी कहे है ईमँगरमघणी होय स शरमेंभोरीकहैंठें अरसरीरमै सरस्यूंच्याकार पीलीपुरास्यांहोय येसर्वबालकांकैहोयछै येसर्वशीतलाकाभेदछै इतिमसूरि कानामसीतला बोदरी भोरी यांकीउत्पत्तिलक्षणजतन संपूर्णम् इतिश्रीमहाराजाधिराजमहाराज्यराजराजेंद्र
श्रीसवाईप्रतापसिंहजीविरचिते अमृतसागरनामग्रंथे सीतपित्त उदर्दकोट उत्कोट अम्लपित्त विसर्प खायुकना मवालो विस्फोटक फिरंगवाय मसूरिकानाम सीतला चोदरी भोरीयांसर्वरोगांकाभेदसंयुक्तउत्पत्तिलक्षणज तननिरूपणनामसप्तदशस्तरंग समाप्तः १७ अथकद रोगांकी उत्पत्तिलक्षणजतनलिष्यते श्रयमजगल्लि कानामपुरणसीतीकोलक्षणलिष्यते कुणसीची कणी होय सरीरकावसिरीसीहोय जीमेंपीडनहींहोय श्रमूंगम माराहोय याकफवायसूंउपजेछै १ प्रथयवप्रक्षाफ़णसी कोलक्षणलिष्यते यवकेयाकार होय करडीहोय गंठीलीहोय मांसमेरेहता होय याकफपायसं उपजे २ अथांचालजी कुणसी कोलक्षएलि० वाकुएासीभारीहोय सूधीहोय उंचीहोय मंडलनैंसीयांहोय राधिजां मेंथोडी होय याकफवायसूंउपजैडे ३ अथवितानामफुएासीकोलक्षणलि० फाटामूंदा की जांगे घणोंदाहहोय पक्यागूलरिकाफलसिरीसीहोय मंडलनेंलीयाहो य ४ अथकच्छपि काफुरासीकोलसालि० पांचतथाउह गांठहोयवेभयंकरहोय कालियासिरीसीउंचीहोय याकफवाय, संउपजे " अथवमी कणसीकोल क्षणलि• कांधी में होय
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