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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra - www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग १७ ३५९ पूंडूं विरूपनाथवामनकैपूनसून काटिकिये बहुत पाकैफूटैपी डाकरै विरूपनाथकी आज्ञापुरे ईमंत्रसूवालाऊपरिगुडनेंवार ७ मंत्रि बालावालानेंषुवाजेतवालोजाय १२ येजतनवेंद्यरहस्य मैंलिष्याछै अथवा कबूतरकीवीउकी सहतसूंगोलिबांधिंदि न ७ निगलायदेतौ वाल्पकदेभीनीसरैन हीं १३ योवैद्यरहस्यमें लिष्याछै अथवा सहतमेसाजीवांटि ईकोलेपकरैतीवालो जाय १४ इतिवालारोगकी उत्पत्तिलक्षणजतनसंपूर्णम् अथयविस्फोटक रोगकी उत्पत्तिलक्षणजतनलिष्यते । कडवीपस्तकाषापासूं षटाईकाषावासूं तीषीवस्तकाषाबासूं गरम वस्तकाषायासूं रूषीवस्तकाषावासूं पारी वस्तकाषावासू अजीर्णकारहग्रसूं भोजनऊपरिभोजनकरि बासूं ताबडामैंर हवासूं सीतउष्णवर्षारितुयेजोतीर्कयणां अथवा नही अथवा यांकाविपरीतपणा कोपकूंप्राप्तहुवाजोवायपित्तकफयेदोष सोसरीरकीत्वचामैंप्राप्तहोय सरीरकालोहीनैं परमासनें पर हाडनें दूषितकरैछै सरीरमें भयंकरफोडाने पैदाकरैछै पहलीज रउपजाय करिसाईनविस्फोटकरोगकहीजे? प्रथविस्फो टकरोगकोलक्षणलिष्यते जुरतैयांफोडामैं मानूंयागिसिरी सीदनी है इसाफोडाहोय वेफोडारक्तपित्तसूंउपज्याचे सरीर मैं सर्वत्रहोय अथवा कहींहोय तीनविस्फोटक कहिजे १ अथ वायकाविस्फोटककोल क्षणलिष्यते मथनाय होय फोडा मेंपीडहोय जुरहोय तिसहोय हाडफूटणीहोय फोडाकोबराहो य लक्षणहोयजीनें वायकोविस्फोटकजाणिजे १ अथपित्त काविस्फोटकको लक्षणलिप्यते जुरहोय दाहहीय फोडा For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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