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२९ अगृतसागरतथा प्रतापसागर नरंग २ उत्पत्तिकै अथसन्निपातकासक्षगलिष्यते अकस्मातक्षरो कमेंतोदाहहोयगावेक्षणकर्मेसीनलागेअरसभावीरीजाय घरसर्वदाअपनेंअपनेधर्मसूडोडिदेअरसरीरकाहराडोमेस वसंध्या में अरमाथांमेघसीपाराहोय आष्यांमैनांसूआयोकरे अरनेत्रवेंकाकालापरलालहोजाय अरकानांमैशब्दहोबोकरे अरकानांमैपाराहोयरमेकांटापडिजाय नंदाहोयमोहहोयत्र रखेकै काससासअरुचिभ्रमयभीहोय अरजीभकालीषरधरी लठरअसीहोय अरलोहा मिल्योकपथूके दिनमैनांदावैरा विमैजागे पसेवधगोआवैकैनहींाचे अरअकस्मात्गावैनाचे हसेरोवै मांथोधुणेप्यासघगालागेडियोहू मलमूत्र उत्तरेनहीं जोडनरैनौथोडोउत्तरैसरीरकसहोजाय कंउमैकफकोथूघरो बोले गूगोहोजाय होटगैरेइंडीयकोजाय पेटभारीहोजाय नाडीकागतिमहामंदसिथलमहासूक्ष्मटूटीसीहोय अरमूत्र हलदसिरीको कैकालोकैलोहासिरकोहोय अरमलकालोसुपे दाईलायांहोयकैसूरकामांससरीकोहोय येजांजुरमैंलक्षरा होयतीकोसन्निपानवरकहिजे सोयासन्निपातज्वरकालव रुपछे श्रेसेसन्निपातज्वरकोजोयश्रीषदकरै अररसकरै अरमंत्रयंत्रतंत्ररिपोरदंभदंसनेप्रादिलेरकहींतरैईसन्नि पानज्वरकुंडूरिकरैताद्यसेरोगीहेसोव्यउगरेदेकरकहींत रैकरराहोयनहीं इतिसन्निपातज्वरलक्षणसं० प्रथसन्नि पातज्वरकाजतनलिष्यते सन्निपातज्वरपालामनुष्यने प विसेसजीमेरिरंक १ नाषिप्राचाकूचाकोपाणीपाइजैदि नकोयोटायोनोदिनमेंपाजेंरातिकोओरायोरातिमेपाचतु
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