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*मृतसागर तथा मतापसागर तरंग अथवा गिलोय इंद्रजव नींबकीछालि पटोल कुटकी सूंठ सुपे दचंदन नागरमोथो पीपलि येसबञ्यपदिबराबरिले इनकोमि हां चूर्णकरिमासाच्यारि ४ अष्टावसेसजलकैसा थिदीजैनौ, ज्वर कुंसासकूं उष्णतां [होदूषवेकूं अरुचिकों पासीकों यहचूर्णहू रिकरैछे ३ अथवा गिलोय दोन्यूंकटाली कचूर दारुहलद पीप वि रडूसो पोल नींबकीछालि चिरायतो येसर्वोषदिसम लीजै इनकूंकूटकरि छदामभरकोक्काथकरिदोन्यूबषतदिन १७ लेतपित्तकफज्वररिहोय ४ अथवा दाष किरमालाकीगिर ध एगो कुटकी नागरमोथो पीपलामूल सूंठिं पीपलि येसर्बबराबरि ले इनकूंजोकूटकरिछदामभरकोकाटो दोन्धूंबषतदिन ११ दी जैती सूल भ्रम मूर्छा रुचि छर्दिको पित्तकफज्वर को यहक्काथ दूरिकरै ५ अथवा ईरससेनीयोज्जरननकालजायछै सोलिषू छू हींगलूको काट्यौपारीक ५ गंधकसोध्योटंक ५ मिरचिकाली टंक ५ हागोसोध्योटक ५ येसर्बमिहीवांटि प्रादाकारसकीपु ट ७ दे पाछैपानांकारसकी पुढसात ७ दे पाछैगोलीरती ४ प्रमा एकीकरै गोली मानगोली १ संध्या रोजीनादिन ७ घायतो क फपित्तज्वरनिरिहीय ६ इतिपित्तकफज्वर्जतनसंपू० अथसन्निपातज्वरकी उसत्तिलक्षणजत्तनलिष्यते जोम नुष्य बहुत चीको घौषट्टो घोगरम घोतीषो घमी को घोलूषोभोजनकरै अरुविरुद्ध्वस्तषाय प्ररघोषाय मरदुष्टपाणीपी अरक्रोधवती रोगलीस्त्रीसंगकरै रडु ष्टमांस अरकचोमांसषाय परसीनना वडोदेसरिनुग्रहइनके विपरीतपतें मनुष्य कैसनिपातको रोगहोय सोयातोईकी
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