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३३४ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग १६ रलिप्यते कोटविषरिजाय बरचुबालागिजाय अरजीकोकंठ सुरघांयोपडिजाय पर वेनैवमनविरेचकटिकवादेनहीं ईसापु रसनैकोटमारिनांर्षे १ अथकुष्टको भेदएकश्चित्रीभीछे तोकी उत्पत्तिलक्षणलिष्यते जोकोटकी उत्पत्तिसोही सित्रीकी उत्पत्तिस्विनीलाल होय रचुवेकोयनहीं कोटचुवै मैंयोभे द अरस्वित्रिकोभेदयेककिलासछै योलालहोयछै पुनः श्वित्री दोयप्रकारको एकतौवायपित्तकफउपज्यो रएकत्रासूंड पज्यो अथश्वित्रिकोटको साध्यासाध्यलक्षगलिष्यते मि हांहोयकालावाला होय एकदोसकोहोय नवीनउपज्योहोय नहीं अग्निमूं उपज्योहोय इसोवित्रिकोटसाध्यजाणिजे इं और लक्षण होय सोविनिसाध्यजाणिजे अथकुष्टकामि लापथकीकुष्टजैसेोरमनुष्यकैजायलागे तैसें ही और भीयेरोगमरपुरसाकै भीजाय लागेछै यांरोगांवालाकौप्रसं गकरैतौ अथवा गात्रसूंगात्र मिलावेतौ अथवा एकठाभोजन करैतौ अथवा एकठासोवेतौ अथवा आपसमैंवस्त्र पहरेती अथवा आपसमैं कहीं वस्त कोलेपकरैतो इतनारोगउडि ओरकेजायलाग सोरोगलिषूछू सोस १ कोट २जुर २ राज रोग ४ षिषणी ५ सीतलानें ६ दिलेर येरोगउडिजाय लागेछै पुनः कोटको असाध्यलक्षएालिष्यते गुच्चस्थानमैं होय हाथ मैं होय होठामैंहोय सोकोटजायनहीं अथकोट रोगकाजतनलिष्यते हरडेकीछालि कागचकीजड सिर स्यूं हलद बावची सीधोलू वायविडंग येसर्वबराबरिले त्याने गोमृतममिवांटिकोटकोलेप करे नौकोट हरिहोय? इतिपथ्या
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