________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३२९
अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग प्रथमाराप्रकारकाकोढत्यांका
येकारणयांनैप्रगटकरै नामलिष्यते कपाल १ उदंवर २ मंडल ३रिक्षजिह्न ४ पुंडरीक ५ सिभ्याकहीजैविभूति ६ कारण ७ येककुष्ट - गजचर्म९ चर्म दल १० किटभ ११ वैयादिक १२ अलस १३ दाद १४ पांच १५ विस्फो टक १६ सतारू १७ विचर्चिका १८ यांमठारांमध्येंसानमहांकुष्ट कपाल १ उदंबर २ मंडल ३ सिध्वाविभूति ४ कांकण ५ पुंडरीक ५ रिक्षजिव्ह ७ भरइग्यारा ११ साधारण प्रथकुष्टरोगकोपू र्वरूपलिष्यते पहलीबराहोय वैत्राको मूल होय अथवा परधरोज्यां को स्पर्शहोय अथवा वेणरूषा होय अथवा बांध सांमें पसेवत्रयावै अथवा तावडांमैंपसेवत्रयावैनहीं अथवा त्र एाकोवर्णओरसोहोय वांत्रणांमैंदाहहोय वामेषुजालियावे वात्वचासोयजाय गंत्रणांमैपीडाहोय वेबएणऊंचाहोय वांत्रणां मैंसूलपणीहोय अरततकालवांकी उत्पत्तिहोय वरघणांदि नांतांर अरकुपथ्यतोथोडोकरै परकुपथ्यको कोपघणही य अरवनेिंहुवांरोमांचहोवोकरे पर वामेलोहानीसरे यजी में लक्षएराहोयतदिजाणिजे कै कोट होसी १ अथको कोसामान्यलक्षणलिष्यते पूर्वजन्म कापापसेती मनुष्यांकी बुद्धि सोविकुर्वित हुईथ की कुपथ्यकरें पावांकुपथ्यांसंकोपकुंमा प्तिहुवोजोवायपित्तकफसोसरीरकीनसांनप्राप्तिहोय रसरीर की त्वचानेंचरसरीरकोलोहीनैं परमासनेंदूसितकरें भर सरीरकी त्वचा को स्वरूप और सोही करदे तावेवैद्य हैसो कोट कहेंछें १ अरवायसरीर मैं घणों को पकरैनदि का पालकुष्टनें दाकरैछे सरीरमैं घणोंकोपकरैतदिकापाल कुष्टने पैदाकरै
For Private and Personal Use Only
१६