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२९५ अमृतसागर तथा प्रतापसागरंग १५ लक्षणहोयत्तीनंकफपित्तकोकहिजे जीवामैसलक्षाहो यनानेसन्निपातकोकहिजे- अथश्व कोलक्षपलि. जीभकानांचरलापदासारासीजांकीकांतिहोय अतिकोमल होय निर्मलहोयचीकगोहोय जीमैंपीडाथोडीहोय प्राछाजी कीविवस्थाहोयमेराभिगेरैक्यूंभीनीसरैनहींतदिजालिजे योत्रभुइहलो१ अथइष्टचकोलक्षालिष्यतेजीमें राधिलोहीदुर्गधियवहोतनिकलिचोकरे अरजीमैंसोजोरह वोकरै अरस्थिरपगारहै वेनेंडष्टनएकाहजी अथजीमअंक रशुरनीकलताहोयतीकोलक्षलिष्यते परजीबरामैकोपी लोरंग अथवा धूसरोवर्णहोय परराधिउगेरेजीमैसंज्ञातीर है अरअंकुरनीसरवालागिजायनीनेवाभरिवाकेवास्ते कारतत्रजाणिजे अरमलेप्रकारजगभरतोहोयती कोलक्षएलिष्यते प्रगमैंअंकूरभुरनीसरैतीमैंगोटिनहीं होयजामसोजोनहींहोयतीनेभलपकारनामोजालिजा अथबगाकोसुषसाध्यादिककोलक्षगलिष्यने मोबा मर्मस्थानमैंनहींहोय अरत्वचामैंअरमांसमैहोय अरतरू पपुरसकेहोय अरपथ्यचालतोहोय अरसीनकालहोयर सापुरसकैतोबरासुषसाध्यछ। अरवायपित्तकफकोतोत्र पोय परपसानेमेददनेमांजीने मांथाकाभेजासिरीसाने जोजपावेतो प्रोबराछोहायनहीं अरशस्त्रांदिकांकीचो दसंउपन्योमोबातीमेंसा मेंदमीजीअरमाथांकीभेजी सिरीसोवैवरामैनीसरतो प्रोवरापाब्योहोयापरकोटीके अरविसषानोहायजीराजरोगीकै अरमधुमहाके परधरा
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