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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग सिले पाछेवेमैंमिश्रीका ५० भरकी चासणीकरे अवलेहकीसीती येोषदिनांषे ठिटका २। पीपलिटका २ इलायचीटका राजवषार टका २ केसरिटका । कहवारूष की नकलटका २१तेवरसीकाबीजट का२शवंसलोचनटकाभर यांसारऔषद्यांनेमिहीं वांटि इमैंना पाछेदका ॥ भर रोजीनांषायतो मूत्ररुनें दाहनें बंधकुष्टने प थरानें लोही कामूनवांनें मधुप्रमेहनें योइरिकरैछ ३२ इनिगोक्षु रावलेह येसर्वजननसर्वसंग्रहमेचे इतिमूत्रछुकी उत्प तिलक्षणजननसंपूर्णम् अथमूत्राघातरोगकी उत्पत्तिल क्षणजतनलिष्यतेमनुषईकरिकेंच्या काकरैछे मूत्र रमूत्राघातमै भेदकाई सोलिंंं मूत्र मूतनांकष्टनघणे परभूतकोवंधथोडी मरमूत्राघात में मूत्र को बंधनोपणे सर भूततापीडथोडीयोमेद अथमूत्राघातकी उत्पत्तिलक्षण लिष्यते कुपथ्यकारकै कोप कूंप्राप्तिहुकोजोवायपित्तकफत्यांकरि कैमूत्राघातहोयर्चे सोसूत्राघाततेरापकार को है १३ वातकुंडलि काष्टीला २ खानवस्ति ३ मूत्रातीन ४ मूत्रजठर ५ मूत्रोत्संग ६. मूत्रक्षय ७ मूत्रग्रंथि - मूत्रशुक्र- ९ उठावात १० मूत्रसाद ११ विडविधान १२ बस्तिकुंडलि१३ अथवानकुंडलिकाकोलक्ष एलिष्यने लषीवस्तकाषावासूं परमूत्र शुक्रकाधारिवासूं वा यसोपेडू में जाय पीडाकरे मूलकीनसांमेंजाय विचरतो कोकु पितहोजाय तदिकफहैसोमूत्र काछेदनैराकै तदिवायहैसोई टीकामुषमें कुंडलकेच्या कारहोय ऊंठरहे तदिपुरषहेसोथोडो थोडोन परसूतांपीउघणीहोय येलक्षणजी में होय तीन वातकुंडलिका रोगका हजे सोमसाध्यछें ईरोगचालीपुरषामरि For Private and Personal Use Only १२ जाय
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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