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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३५ १२ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग पाछैयाकजलीवडाकौडामैंभरै पाछेसुहागोपालीबाट कौडा कैमूंलगाने पाछेंबाकोडाने कूलडी में मेलि गजपुटमें फूकिदे पा छेस्वांगसीतलवांचे कुल्हडीमांही सूंचे कौडानैं काटिमिहींवांटिले पाछैरतीच्यारी ४ भरले अरईमैमिरचि २१ मिहींपांटिमिलायघृत क्रैसाथिषायतौमूत्रहवजाय १९ इतिलघुलोकेसुररसः ये सर्वजननवैद्यरहस्यमेलिष्याछै अथवा निरूहस्तिकाक स्वासं उत्तर चस्तिकाकरि वासूं मूत्रजाय २१ अथवा सता वरी कांसकीजड डाभकीजड गोषरू विदारीकंद सालर कीजड किसोरया यांकोकाटोकरिती में सहतमिश्रीनांषिपीवैतौ मूत्रह छ्रजाय २२ योचकदत्तमैछै अथवा तेवरसीकावीज महुवो दारुहलद यांकोकाटोकरिपीवैतौ पित्तकोमूत्रकृच्छ्रजाय २३ थवा केलिकारसमें गोमूचनांषिपी वेतौ कफकोमूत्र सजाय २४ अथवा इलायची मिहींवांटिजलसूं लेतोकफकोमूत्ररुजाय २५ अथवा मृगांकोचूएटं १ चांवलांकापासूनौकफ कोमूत्रकृछ्रजाय २६ अथवा गोषरू सूंठ यांकोकाढोलेतीक फकोमूत्रकृछ्रजाय २७ योहंदमे अथवा वडीकट्याली पाठ महलौठी मडुवो इंद्रजव यांकोकाढोलेनीसन्निपातकोमू त्रकृछ्रजाय २- अथशककारोकिवाकासूत्रकलिष्यते सिलाजीत सहन में मिलायषायतौ शुक्रकारोकिवा कोमूत्रकृछ्र जाय २९ योचकदत्तमैछै अथवा उत्तमस्त्रीसंग करे तोयो मूत्रकृछ्रजाय ३० अथवा परैंटी की जड कोकाटोलेनौ संपूर्णमूत्र कुछ्रजाय ३१ अथवा गोषरूकोपंचागटका १०० भरलेतीने कु टिमाडगुणांपालीमैोटाचे तांकोचतुर्थोसर है तदिवे छा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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