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२१८ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग १ नाकॉलक्षगलिप्यते योलोहागुल्मस्त्रीकेहीहोयछै नवमांमही नांपहलीस्त्रीकोकाचोगर्भपडै कुपथ्यभोजनांसू प्रथमगर्भकारि 'तुसमें अथवा रिनुविनां तीस्त्रीकेवायसोलोहीइंग्रहणकरि गोला पैदाकरैछै वेगोलामें पीडघणीचाले वेमैंदाहहोय पर पित्तकागोलाकासलक्षणमिलेजांमै अरोसर्वजागांफिरै अं गाविनाहीनीमैसूलचाले स्वीकापेटकागोलामेंगर्भकासर्वल क्षणामिले बेनैंरुधिरउपज्योगोलाकोरोगजारिगजे पणिवेस्त्रीके दशओंमहीनोंव्यतीनहोयजुकैतदिगोलाकोवैद्यहेसोजननकरे ५ अथगुल्मरोगकोअसाथ्यलक्षालिष्यते जीमनुस्यकैगो लोफिरैनौ अथवा नहींफिरतो अरपाडयएचाले सरीरमैदा हघणों होय पथरीकासीगांडिचाहोय वागाठिमनविगाडि नांषै सगरनैंडर्बलकारदे अग्निकाबलकोनांसकरिदे नांगोला कारोग त्रिदोषकोजाणिजे योअसाध्यछै। अथगोला काऔरअसाथ्यलक्षगलिष्यते गोलोक्रम वथै जीमैंसू लचालै काछिपाकीसानाईगादोहोयसरीरडुर्बल होय भोजन मैंरुचिजातीरहै कडवोषारोवमनकरेजुरहोय तिसहोय नंदा होय पीनसहोय अरअतीसारहोय हियाकै नाभिके पगांके सो जोहोय निसघालागेयरोगावालामनुस्यकैअसाध्यलक्षण जाणिजे। अथगोलाकाजतनलिष्यते गरमधमैत्र रंडाल्याकोलेल अरहरडेकोचूनांषि रोजीनांपीवेतौ जुला बलागिकरिगोलोहरिहोया परनेल कामर्दन भागोलो जाय अथवा साजी कूट जवषार केराकोषारयांकोचूर्णक एिईमैंअरंडकोनेलमिलायीवनौयायकोगोलाजाय। अथ
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