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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१७ •अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग ११ अथवायका गुल्मको लक्षणलिष्यते जोगोलाकास्थानांमैपीडा कोघटनवधनपण होय अधोवाय की प्रवर्त्तिश्राछीतरैहोयनहीं मलऊतरैनहीं मूंटोसुकै गलोसूकै सरीरकीकांतिकाली होय सीतज्वरहोय हिया कृषिमैं पसवाडा में यांसारामैं पीडाहोय हि यामैं भोजनपयांपाछै पीडाघणी होय भोजनकरयांहलकीहोय अरलूषाकसायलाकडवारसांसूंपीडावधे येलक्षणजी मैं होय तीनैंचायकोगोलोकहिजे' प्रथपित्तकागोलाकी उत्पत्तिलिष्यते कडवो घाटोती षोऊन्हूं यारसांकासे वासूं कोधकाकरि बासूं अतिमद्यकाचीवासूं नावडा कावैठिवासूं निकासेवा सूं यबकावधिवासूं चोटकालागिवासूं रुधिरकाविगडवासूं यांवस्तांसूंपित्तकोकोप होय १ अथपित्तकागोलाकोलक्ष एलिष्यते ज्वरहोय तिसहोय शरीरमें पीडाहोय सूलहोय भो जनपचतांषणापसेवत्र्याचे दाहहोय ब्रणहोय गोलाकै हाथला गतांपाडपणीहोय लक्षणहोयतौपित्तको गोलोजाणिजे १ अथकफ का गोलाकी उत्पत्तिलिष्य • इंदीवस्तकाषायासूं भा रीवस्तकाषायासूं चीकएणीवस्त काषावासू वैठारहवासू दिन कासोवासूं इतनी वस्तांंंकफको गोलोपैदा होय छे अरसर्व कारपामिलैतदिसन्निपान को गोलो पैदा होयछे प्रथकफका गोलाकोल क्षणलिष्यते जसीतज्जरहोय सरीरमेंपीडाहो य मूढांसूंकडवीषाटोनमनहोय बासीहोय भोजनमें रुचि होय सरीरभारयौहोय येलक्षणजी मैहोयनीन कफकोगोलोक हिजे येसर्ववायपित्तकफ काजीमै होयतीने संनिपात कोगोलो कहिजे" श्रथस्त्रीधर्मरूपजोरुधिरती उपज्योजोगुल्म : For Private and Personal Use Only
SR No.020035
Book TitleAmrutsagar Vaidyak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSawai Pratapsinh Maharaj
PublisherGyansagar Press
Publication Year1860
Total Pages590
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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