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१४३ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग होय रात्रिनेंएकलोफिरै पवित्ररहे येलक्षणहोयतोराक्षसला जाणिजे १३ प्रथब्रह्मराक्षसजींनैलाग्योहोयतीसूउप ज्योजोउन्मादतीकोलक्षणलिप्यते देवता ब्रम्हा गुरु याँसूं बैरराषे वेदर वेदांत कोजाणिवावालोयापहोजाय अराप कासरीरनै पापही पीडाकरै परमारैनहीं येलक्षणहोयतौ ब्रम्ह राक्षसलाग्येोजाणिजे १४ अथपिसाचजीनैलाग्येोहोयती सूंउपज्योजोउन्मादतीकोलक्षणलिष्यते उँचाहाथरापियो करै सरीरहसहोजाय क्यूंकोक्यूंमिथ्या वकै सरीरमेंडुर्गंधियावे अपवित्रर है अतिचंचलहोजाय घणौषायउद्यानमैमनरहे भ्रम घणौ रोवै ये लक्षण होयतो पिसाचलाग्योजाणिजे १५ अथउ न्मादको साध्यलक्षणलिप्यते प्रषिफटीसीहोजाय मोल बोकरे मूंढेागाचोकरे नांदणी आवे पडिजाय कांपे येल क्षएगहोयतौष्यसाध्यजाणिजे परपून्यूने आजारपणो होयतो दे वतांकोदो सजाणिजे परसांग में कोईलागेतो असुरकोदोसजाणि जै भ्रमावसनें ये लक्षण होयतौपितरांकोदोसजाणिजे श्रानये लक्षणहोयतौगंधर्वकोदोसजाणिजे पडिवानैयोविकार होयतो जक्षकोदोसजाणिजे रात्रिनेयेलक्षणहोयनौराक्षस पिशांचाकोदोसालिजे अथयांसारांकाला गिवा की तरहलिष्य ते जैसे मनुष्यादिकां कोमतिबिंबदर्पणादिकांमेधसिजाय छै तैसेंहाँप्रालीमानमेंसी तउष्गंध सिजाय जैसे प्रातसीकाचमे सूर्यको किरणधसिकरित्र्यग्निनउपजायदे तैसेंही मनुष्यादिका कासरीरमें भूतप्रेतादिकधसिजाय सरदीषैनहीं चिन्हासू जाएयां पडे अथउन्मादादिलेरयांसारांकाजथाजोग्पज
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