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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास मानकर तुम्हें भी यह प्रतिज्ञा करनी चाहिये कि हमारे वंश में कोई आदमी हिंसा न करे।'
अग्रसेन की इस धर्मानुकूल संमति को सुनकर शूरसेन के हृदय में भी हिंसा के प्रति घृणा पैदा हो गई । वे दोनों भाई राजमहल से निकल कर यज्ञभूमि में आए । वहां ऋषि मुनि तथा दर्शकों की बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठी थी । अग्रसेन के आते ही सारा मंडप जयध्वनि से गूंज उठा । सब लोगों ने हर्ष प्रकट किया । पण्डितों के आदेश से राजा अग्रसेन सिंहासन पर बैठ गया। अग्रसेन ने आदेश दिया कि उसके सब पुत्र तथा कन्यायें यज्ञ मंडप में उपस्थित हों। सत्र के उपस्थित होने पर राजा ने संबोधन करके इस प्रकार कहा 'यज्ञ में पशुहिंसा से मेरे हृदय में घृणा उत्पन्न हो गई है। अब मैं पशुहिंसा को उचित नहीं समझता । अतः अपने सब भाइयों, पुत्रों, कन्याओं और कुटुम्बियों को यही उपदेश करता हूँ, कि कोई हिंसा न करें ।" यह यज्ञ अधूरा ही रह गया। ___ उरुचरितम् के इस विवरण से राजा अग्रसेन के यशों का विस्तार से वर्णन मिलता है । भाटों के गीतों में भी अग्रसेन के नागकन्या के साथ स्वयंवर, इन्द्र के साथ संघर्ष तथा अठारह यज्ञों का हाल बहुत कुछ इसी ढंग से कहा जाता है। राजा अग्रसेन के जीवन की ये मुख्य घटनायें हैं, और इनसे उनके चरित्र के संबन्ध में महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है । यज्ञों में हिंसा से अकस्मात् घृणा उत्पन्न होने से उनके जीवन में एक भारी परिवर्तन आ गया। ऐसे परिवर्तन के उदाहरण इतिहास में और भी मिलते हैं । मौर्यवंशी प्रसिद्ध सम्राट राजा अशोक
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