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अग्रवाल जाति की उत्पत्ति
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ऊपर के दोनों सूत्रों में और उससे बने हुवे आग्रेय, आग्रायण आदि शब्द स्पष्टतया एक वंश व जाति को सूचित करते हैं । यह ध्यान में रखना चाहिये, कि जिस जाति को हम आजकल अग्रवाल कहते हैं, उसी को पुराने समय में अगवंश भी कहते थे । हमारे हस्तलिखित ग्रन्थ 'अग्रवैश्य वंशानुकीर्तनम्' में इसे अग्रवंश ही कहा गया है। सत्रहवीं सदी में भी इसे वंश ही कहा जाता था । आक्सफोर्ड की इण्डियन इन्स्टिट्यूट लायब्रेरी में पद्मपुराण की एक हस्तलिखित प्रति है, जिसे सम्वत् १६१९ व तदनुसार ईसवी सन् १६६३ में अगर वंश व अग्रवंश के मुरारिदास नामक व्यक्ति ने लिखवाया था । यह बात निम्नलिखित शब्दों में प्रगट की गई है—
“संवत् १७१६ वर्षो भाद्रपद मासे शुक्लपक्षे दशम्यां १० तिथौ गुरुवासरे इदं पदमपुराण लिखापितम् अगर वंशे साधु साहु श्री गजधर तत्पुत्र पुण्य प्रति पालक साह श्री श्री श्री ४ मुरारिदासेन लिखाप्तिम् स्वम् आत्मपठनार्थं धर्मानन्द विनोदार्थम्”
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इस उदाहरण से स्पष्ट है, कि सत्रहवीं सदी में अग्रवाल लोगों को अगरवंशी या गवंशी कहा जाता था । अग्रवाल शब्द हिन्दी भाषा का है, जिसका अर्थ 'अग का' है । 'वाल' हिन्दी भाषा का प्रत्यय है, जिसका
'' होता है । 'अग्र का' या 'अग्रवाल' का संस्कृत में ठीक अनुवाद 'आगेय' होगा । यह नाम महाभारत और अष्टाध्यायी में ( प्रत्यय द्वारा बना कर) मिलता है । राजा अग्र के वंश में होने के कारण ही 'आग्रेय'
1. यह उद्धरण आक्सफाड के पुस्तकालय से ही नकल किया गया है ।
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