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फुटकर टिप्पणियां और माहुरी वैश्यों की उत्पत्ति हुई ।' इस बात में सत्य का अंश कहां तक है, यह जानना सम्भव नहीं है । पुराने स्मृतिकारों ने विविध जातियों की उत्पत्ति की व्याख्या इसी प्रकार की वर्ण संकरता से की है । मनुस्मृति में इसी ढंग के वर्ण संकरों की एक लम्बी सूचि दी गई है। पर हमारी सम्मति में इसमें सत्यता नहीं है । हमारा विचार है, कि अग्रवाल जाति में से ही पृथक् होकर इन बिरादरियों की स्थापना हुई, वर्ण संकर के कारण नहीं । अग्रहारी वैश्यों का अग्रवालों से घनिष्ट सम्बन्ध है, यह बात निश्चित है।
(४)
गहोई जाति यह वैश्य जाति बुन्देलखण्ड में विशेषरूप से पाई जाती है। संयुक्त प्रान्त में मुरादाबाद श्रादि के समीपवर्ती जिलों में भी इस जाति के बहुत से वैश्य हैं । इस जाति में बारह गोत्र हैं , और इनके प्रायः सभी गोत्र अग्रवालों में भी हैं । इससे प्रतीत होता है, कि इस जाति का भी अग्रवालों से घनिष्ट सम्बन्ध है । सम्भव है, कि जिस प्रकार प्रसिद्ध वैशालक वंश से वर्णवाल और अग्रवाल जातियों का विकास हुवा, वैसे ही इस गहोई जाति का भी वैशालक वंश से ही विकास हुवा हो । गोत्रों की समता की व्याख्या इसी आधार पर की जा सकती है। 1. अग्रवालस्य वीर्येण संजाता विप्रयोपिति अग्रहारी करवानी माहुरी संप्रतिष्ठिताः ।।
( जातिभास्कर पृष्ठ २६३)
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