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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
२४ जैनों में तो अधिकांश लोग एक ही गर्ग गोत्र के हैं, अतः उनके विवाह प्रायः जैन-भिन्न अग्रवालों में ही होते हैं। धर्म-भेद होते हुये भी जातीय दृष्टि से जैन तथा दूसरे अग्रवालों में भेद नहीं आया। इससे सूचित होता है, कि अग्रवालों में जातीय भावना बड़ी प्रबल है। जैन अग्रवालों के विवाह अग्रवालों से भिन्न दूसरे जैनों में नहीं होते। विवाह हो जाने पर कन्या प्रायः अपने पति के धर्म का अनुसरण करने लगती है। पारिवारिक आचार-विचार तथा कर्मकांड में धर्म-भेद से प्रायः कोई भी बाधा अग्रवालों में उपस्थित नहीं होती;
अनेक अग्रवाल आर्यसमाज, राधास्वामी आदि नवीन हिन्दू सम्प्रदायों के भी अनुयायी हैं । पंजाब में कुछ अग्रवाल सिक्ख भी हैं । कुछने मर्दुमशुमारी में अपने को मुसलमान भी लिखवाया है ।
(३) अग्रवालों का एक अन्य महत्त्वपूर्ण भेद नसल या रक्तशुद्धि के आधार पर है। यह भेद बीसा और दस्सा का है। सामान्यतया, यह समझा जाता है कि जो अग्रवाल रक्त की दृष्टि से पूर्णतया शुद्ध हैं, जो बीस में में बीस ( १०० फी सदी) शुद्ध अग्रवाल हैं, वे बीसा हैं । इसके विपरीत जिन्होंने कुल मर्यादा के प्रतिरूप किसी दूसरी जाति की स्त्री से विवाह कर लिया, उनकी सन्तान रक्त की दृष्टि से बीस में से बीस अग्रवाल नहीं रही। उनकी शुद्धता बीस में से दस (५० फी सदी) रह गई। इसलिये वे लोग दस्से कहाते हैं । मध्यप्रान्त तथा बम्बई प्रान्त में कुछ अग्रवाल पंजे भी कहाते हैं । उनकी स्थिति दरसों से भी नीचे है। उनमें रक्त की शुद्धता बीस में से पांच ( २५ फी सदी ) समझी जाती है।
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