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२२३ भारतीय इतिहास के वैश्य राजा ___ इन वैश्य नागों का इतिहास हमें लिखने की प्राकश्यकता नहीं। श्री काशीप्रसाद जी ने इस बात पर आश्चर्य प्रगट किया है, कि इन नाग राजाओं को वैश्य क्यों लिखा गया है । पर हमें इसमें कोई आश्चर्य प्रतीत नहीं होता। नाग राजाओं का वैश्य अग्रवंश से प्राचीन सम्बन्ध है। उनको भी यदि वैश्य जातियों में सम्मिलित किया गया हो, तो यह सर्वथा सम्भव है।
वर्धन तथा नाग वंश के अतिरिक्त भारतीय इतिहास के सुप्रसिद्ध गुप्त वंश को भी मंजुश्री मृल कल्प ने वैश्य लिखा है । इसी गुप्त वंश में चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय ( विक्रमादित्य ), कुमारगुप्त और स्कन्दगुप्त जैसे प्रसिद्ध सम्राट् हुवे। इस सम्बन्ध में भी मंजुश्री मूल कल्प की निम्नलिखित बातें उल्लेख योग्य हैं--
"निःसन्देह उस देश में तब एक राजा होगा, जो मधुरा ( मथुरा) का उत्पन्न हुवा होगा, और जिसकी माता वैशाली की होगी। वह वणिक् (वैश्य ) जाति का होगा। वह मगध देश का राजा हो जावेगा।"
अन्ते तस्य नपे तिष्ठं जयाचावर्णनद्विशौ ।।७५० वैश्यः परिवृता वैश्यं नागाहृयो समन्ततः ।।७५. १.
मंजुश्रीमूलकल्प पृ० ५५-५६ 1. भविष्यन्ति न सन्देह: तस्मिं दश नराधिपाः
मथुराजातो वैशाल्या वणिक् पूर्वी नपो वरः सोऽपि पूजितमूर्तिस्तु मागधानां नृपो भवेत् ।।७६०
मंजुश्रीमूलकल्प पृ० ५६
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