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उरु चरितम्
किया गया है । अन्धकवृष्णिसंघ में अनेक गणराज्य सम्मिलित थे। कई लोग उग्रसेन और अग्रसेन को एक ही समझते हैं । यद्यपि इन दोनों नामों की एकता को प्रदर्शित करने के लिये कोई प्रमाण नहीं है, पर मथुरा के समीपवर्ती प्रदेश में अग्रसेन और शूरसेन की सत्ता इस कल्पना को प्रोत्साहित अवश्य करती है, कि उग्रसेन और अग्रसेन को एक ही मान लिया जाय । अन्धकवृष्णिसंघ में सम्मिलित गणराज्य भी संभवतः वार्ताशस्त्रोपजीवि व वैश्य धे । शायद इसीलिये भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र ने अपनी 'अग्रवालों की उत्पत्ति ' में श्री कृष्ण को वैश्य बताया है।
उरु चरितम् में जिस चन्द्रवंशी महाराज उरु का उल्लेख है, उस का पौराणिक वंशावलियों में कहीं पता नहीं चलता । पुराणों में उरु नाम के एक राजा का वर्णन अवश्य आता है, पर मथुरा के साथ उसका कोई सम्बन्ध नहीं है।
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