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महालक्ष्मी व्रत कथा
तत्र भूरिस्तपस्तेपे गोलाकं परतः परम् जगाम....सस्त्रीकः कमलाशया ॥११५
राजा अग्रसेन के उत्तराधिकारी ---
विभुस्तु राज्यमकरोत् पैत्र्यं च नव......... ........ 'लक्ष ददौ मुद्रा ज्ञातो दारिद्र्यमागते ॥ १५६ शतवर्षगते राज्ञे पुत्र नेमिरथं तथा अभिषिच्य गतो मृत्युं गता राशी हुताशनम् ॥ १५७ विमलः शुकदेवश्च तस्य पुत्रो धनञ्जयः तस्य श्रीनाथ पुत्रोऽभूत् श्रीनाथस्य दिवाकरः ॥ १५८ दिवाकरो जैनमते शिखिन पर्वतं गतः
तथा ब्रह्मसर है, वहां जाकर उसने बहुत तप किया तथा लक्ष्मी की आशा से सदेह तथा सस्त्रीक स्वर्गधाम को गया । १५३-१५५
विभु ने अपने पिता के राज्य का शासन किया । जब कोई कुटुम्बी दरिद्र होजाता था, तब उसे वह लाख मुद्रायें देता था । १५६
सौ वर्ष बीत जाने पर जब वह अपने पुत्र नेमिरथ को राज्य में अभिषिक्त कर चुका, तो उस की मृत्यु हुई, और उसके साथ ही उसकी रानी ने भी अग्नि में प्रवेश किया । १५७
फिर विमल, शुकदेव, फिर उस का लड़का धनञ्जय-ये (राजा) हुवे। उसका पुत्र श्रीनाथ हुवा । श्रीनाथ का (पुत्र ) दिवाकर हुवा। १५८
दिवाकर जैन मत में ( गया ), उसने पर्वतशिखर पर जाकर
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