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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास १५४ शाहबुद्दीन गौरी और दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान के पारस्परिक युद्धों का वर्णन करने की यहां कोई आवश्यकता नहीं। ये युद्ध मुख्यतया दिल्ली के पश्चिम में करनाल और हिसार जिलों में ही लड़े गये थे । अगरोहा इस भयङ्कर संघर्ष के प्रभाव से नहीं बच सका । भाटों के गीत सर्वसम्मति से बताते हैं, कि गौरी श्राक्रान्ता ने अगरोहा पर भी हमला किया और उसे नष्ट किया । इस समय अगरोहा का वास्तविक ध्वंस हुवा और उसका पुराना वैभव उसे फिर कभी प्राप्त नहीं हुवा । __परन्तु फिर भी अगरोहा एक छोटे से नगर के रूप में विद्यमान रहा। जैसा कि हम पहले एक अध्याय में प्रदर्शित कर चुके हैं, तुग़लक-वंश के शासन काल में अगरोहा भी एक ज़िला था। परन्तु एक ज़िले का मुख्य नगर होते हुए भी अगरोहा का हास रुका नहीं। इस समय यह एक पुराने खण्डहरों का ढेर मात्र ही शेष रह गया है, जिसके समीप एक बहुत छोटा सा उसी नाम का गांव अगरोहा के अतीत वैभव का उपहास सा कर रहा है । इस गांव में थोड़े से किसान बसते हैं, और आग्रेय गण का कोई भी वंशज वहां विद्यमान नहीं। पुराना अगरोहा विस्तृत खेड़े के नीचे दबा पड़ा है।
गौरी आक्रान्ताओं से अगरोहा के नष्ट किये जाने के बाद अग्रवालों ने वहां से जाकर दूसरे स्थानों पर बसना शुरू किया। अपना प्राचीन घर छोड़ कर वे उत्तरीय भारत में सर्वत्र फैलने लगे । उनका एक बड़ा भाग अगरोहा के समीप ही दक्षिण की तरफ राजपूताने में चला गया। वहां जाकर मारवाड़ में उन्होंने अपनी बस्तियां बसाई । राजपूताने के अन्य भी अनेक स्थानों पर वे गए । दूसरे अग्रवाल पूर्व और उत्तर की तरफ जाकर
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