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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
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प्रतापी मनुष्य अपना पृथक् कुल कायम करके गोत्रकृत् की पदवी को प्राप्त करते रहे । गर्ग, गोयल, वात्सिल आदि इसी प्रकार के गोत्रकृत् प्रतापी पुरुष थे । इनके कुल राजा धनपाल के वंश के आधीन - राजा धनपाल के राज्य में विद्यमान थे। जब राजा गुणधी ने अपना पृथक् वंश चलाकर नया राज्य कायम किया, तो इनमें से कुछ कुल उसके साथ हो गये । फिर जब राजा अग्रसेन ने अपना पृथक वंश चलाकर नया राज्य कायम किया, तो गर्ग, गोयल आदि अठारह प्रधान कुल उसके साथ नये राज्य में सम्मिलित हुवे ।
उसी प्रक्रिया का एक उदाहरण बिलकुल पिछले इतिहास से दिया जा सकता है । हम इस पुस्तक के पहले अध्याय में राजाशाही
वालों का जिक्र कर चुके हैं। वहां हमने यह भी बताया था, कि इनका प्रारम्भ फरुखसियर के जमाने में राजा रतनचन्द्र द्वारा हुवा था । बादशाही दरबार में उसका बड़ा मान था । मुसलमानों के साथ अधिक मेल जोल होने के कारण उसका रहन सहन अग्रवाल बिरादरी के लोगों को पसन्द न था । उन्होंने उसे जाति से बहिष्कृत कर देना चाहा । पर
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राजा रतनचन्द्र जैसे प्रतापी पुरुष ने इस बात की परवाह न कर अपनी बिरादरी ही पृथक् कायम करली, जो उसके नाम से 'राजाशाही' कहाने लगी । अग्रवालों में पहले से विद्यमान कुछ गोत्रों के लोग उसके साथ सम्मिलित हुवे । राजाशाही अग्रवालों में पूरे अठारह गोत्र नहीं पाये जाते हैं— जो लोग रतनचंद्र के प्रभाव में थे, वे ही उसकी बिरादरी में शामिल हुवे थे । हम कह सकते हैं, कि राजा रतनचन्द्र भी एक ' वंशकृत् ' था । उसके जमाने में भारत में छोटे राज्यों का युग समाप्त हो चुका था ।
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