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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
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स्थापित हुवे राज्य में नये वंशकर्ता राजा के साथ जो लोग अपना नया कुल कायम करते थे, तो उन्हें गोत्रकृत् कहते थे। __ राजा अग्रसेन एक नये वंशकर राजा थे । धनपाल के वंश में उत्पन्न होकर उन्होंने देवी महालक्ष्मी की भक्ति से उन्हें प्रसन्न कर अद्भुत शक्ति प्राप्त की और अपने नाम से एक नया नगर बसाकर वहां नवीन राज्य तथा नवीन राजवंश स्थापित किया । इसीलिये उनके नाम से नया राज्य तथा नया वंश चला। उनके नव स्थापित आग्रेय राज्य में जो लोग बसे, जो कुल व घराने सम्मिलित हुवे, वे पहले से विद्यमान थे । सम्भव है, कुछ घराने नये भी हों, पर आग्रेय गण में सम्मिलित कुल सब अग्रसेन की सन्तान नहीं थे।
यह बात एक अन्य प्रमाण से पुष्ट की जा सकती है । वर्णवाल या बारनवाल नाम की एक अन्य वैश्य-जाति आज कल है । इस जाति में कई गोत्र ऐसे हैं, जो अग्रवालों में भी हैं, जैसे वात्सिल, गोयल और गाविल । वर्णवाल जाति की अनुश्रुति के अनुसार इस जाति का उद्भव राजा गुणधी से हुवा । गुणधी राजा समाधि का पुत्र था । समाधि के दो लड़के थे, मोहन और गुणधी । मोहन के वंश में राजा अग्रसेन हुवे, और गुणधी से जो पृथक् वंश चला,वह आगे चलकर उस वंश के राजा वर्ण के नाम से वर्णवाल व बारनवाल कहाया, राजा समाधि तथा उसके पूर्वजों का वर्णन हम अग्रसेन के वंश का वृत्तान्त लिखते हुवे लिख चुके हैं । वर्णवालों का समाधि के छोटे पुत्र गुणधी से उद्भूत होना सूचित करता है, कि वे भी वैशालक वंश की एक छोटी शाखा हैं। वे भी वैश्य भलन्दन, वात्सप्रि और मांकील की सन्तान हैं। अब एक ही वंश की
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